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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SANSARSHURAKASERECTOR था और अब कर्मरूप बडे शत्रुओंको जीतते हैं; धन्य हे यह महापुरुष, इत्यादिकश्लाघाकरते आगेचले। थोडे ही समयके बाद वहाँ कौरव आपहुंचे। उन्हीमेंसे दुर्योधनने दमदन्त राजऋषि जान कर बहुत दुर्वचनोंसे तिरस्कार कर उनके सामने वीजोरेका फल फेंका और आगे चला गया । बाद “यथा राजा तथा प्रजा।" इस न्यायसे पीछे चलते हुए सैन्यने काष्ठपाषाणादिकके फेंकनेसे मुनिके चारोंतरफ ऊंचासा चोतरा बना दिया ।। |पीछे लौटते समय पाण्डवोंने मुनिके ठिकाने बडा चोतरा देखकर लोगोंसे पूछने पर वह सब कौरवोंका किया हुआ दुराचार जान कर जल्दी वहाँ आकर पाषाणादिक दूर कर दमदन्त राजऋषिको नमस्कार कर वे अपने ठिकाने गए । इस प्रकारसे पाण्डवोंने सत्कार किया और कौरवोंने अपमान किया तोभी उस मुनीन्द्रने दोनोंपर , समभाव धारण किया, किंचिन्मात्र भी राग द्वेष नही किया, इस प्रकार यह समभाव पर दमदन्त राजऋषिका । दृष्टान्त कहा ॥१॥ __ अब दया-पूर्वक प्रवृत्ति पर मैतार्य का दृष्टान्त कहते हैं;-मैतार्य मुनि पूर्व-भव-आचरित कर्मके प्रभावसे राज गृह नगरमें चाण्डालके कुलमें उत्पन्न हुआ। चाण्डालनीने जन्मसमय-में ही उसको मृतवत्सा रोग धरनेवाली धनदत्त सेठकी स्त्रीको गुप्त रूपसे देदिया। वह बालक सेठकै ही घरमें बड़ा हुआ । क्रमसे यौवनावस्थामें पूर्व-3 भवके मित्र देवताके साहाय्यसे ८ सेठोंकी कन्या और एक श्रेणिक राजाकी कन्याके साथ पाणिग्रहण किया। For Private and Personal Use Only
SR No.020325
Book TitleDwadash Parv Vyakhtyana Bhashantaram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1926
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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