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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तह सो कहते हैं हमामी राज्यपाकर वह तुम्हारी ऊर्ध्वगति राज्यके जो सात दीवा० योग्यस्थान देखके बैठा । उस अवसरमें कुलपतिने राजाको धर्मोपदेश दिया उसमें संसारकी असारता बताई ॥ और कार्तिक व्याख्या०/कहा तें अपने छोटेभाईके साथ राज्यकेवास्ते संग्राम करताहै यह क्या युक्त है कारण राज्यके जो सात अंग और पौर्णिमा राज्यचिन्ह ये अधोगतिः जाना कहतेहैं ॥ छत्र यह सूचना करताहै तुम्हारी ऊर्ध्वगति बंध होगई चमर यह कहते दिव्याख्यान. ॥५६॥ 1 हैं कि जैसे हम ऊपर जाकर नीचे आतेहैं ऐसे तुमभी राज्यपाकर बहुत ऊपर आयेहो जो सुकृत नहीं करोगे तो नीचे-12 | जानाहोगा ॥ हाथी कान चलातेहैं सो कहतेहैं हमारे कानके जैसी राज्यलक्ष्मी चंचल है ॥ घोड़ा अपनीपूंछ चलाता|5|| हुआ कहताहै कि राज्यलक्ष्मी चंचल है ॥ ऐसी राज्यलक्ष्मीके वास्ते अपने भाईकेसाथ संग्राम करना अनुचित है। | ऐसा सुनके द्राविण बोला भरतबाहुवलिनेभी राज्यके वास्ते परस्पर बारहवर्ष संग्राम कियाहै । तब कुलपति बोला तुम अपने पूर्वजोंकी निंदा करतेहो ॥ भरतने बाहुबलि के साथ राज्यके वास्ते संग्राम नहींकिया किंतु चक्ररल आयुधशालामें प्रवेश नहींकरताथा ॥ इसवास्ते संग्राम किया । तें तो राज्यके लोभसे संग्रामकरताहै । मैंने श्रीऋषभ देवखामीके साथमें दीक्षा लीथी। स्वामी तो बारह महीनोंतक मौनमें रहे और आहारनहींमिला तथापि विचरते रहे ॥ हम लोगोंसे निराहार नहींरहागया तब वनमेकन्दमूलका अहार करते तप करतें वनमें रहते हैं इस लिये| भरतबाहुबलिःका दृष्टांत यहां देना नहीं ॥ और राज्यके वास्ते भाईकेसाथ संग्राम करना नहीं ॥ राज्यलक्ष्मी कैसी है सो कहतेहैं ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020325
Book TitleDwadash Parv Vyakhtyana Bhashantaram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1926
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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