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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वृद्धिःप्राप्तभये इस प्रकारसे द्रविडराजा अपना राज्य सुखसे पालताथा उस अवसरमें भरतराजाने अपनीआज्ञा म-18 नानेकेलिये अट्ठानवेभाइयोको दूत भेजे द्रविडराजाने दूतके मुखसे भरतका चक्रवर्तीपदका खरूपजानके इसीतरहसे है सबभाई इकट्ठे होकर अपने अपने पुत्रको राज्य दिया । तब द्रविडराजानेभी अपने बड़ेपुत्र द्राविडको राज्य दिया । छोटे वारिखिल्लको १ लाख गांव अलगदिया आप संसारकी वासनाको छोड़कर और भाइयोंकेसाथ ऋषभदेव खामीके पास दीक्षा लिया॥ तपकरताहुआ केवलज्ञानपाया और द्राविड़राजापिताका दियाहुआराज्यपालताहुआरहा वारिखिल्लभी पिताके दिएहुए गांवोंकी रक्षाकरे ॥ कितने वर्षगए उस अवसरमें द्राविडराजाके मन में ऐसा विचारहुआ। मेरे पिताने दीक्षाके समयमें लाखग्राम दिया सो अच्छानहीं किया। मेरा राज्य कम होगया परन्तु मैं इसके । पाससे लाखगांव जबरदस्तीसें लेउंगा ऐसा विचारके अपनी सेना इकट्ठीकरके युद्धकेवास्ते चला ॥ तब वारिखिल्लभी भाईके आनेका वृतान्तसुनके अपना सैन्यलेके सामनेचला ॥ अपनेदेशकी सीमारोकी परस्पर दोनोंका महायुद्ध है हुआ॥ और बहुत हाथी घोड़ा मनुष्य मारेगए लोहूकी नदीवही ॥ सात महीनोंतक संग्रामहुआ १० करोड़ मनुष्य मारेगए । वर्षाऋतु आई संग्रामबन्द होगया द्राविडराजा वनमें क्रीडाकरनेके वास्ते गया ॥ वह वन अनेकआमाकदली, नीम, कदम्बादि गुल्मलतापत्र, पुष्प, फल वगैरहा वन समूद्धिःसे शोभमान और सरोवरझरनोंसे शोभित वनदेखता हुआ जाताहै। उतने उसीवनके मध्यभागमें तापसगणसे शोभित कुलपतिकोदेखा ॥राजा घोड़ेसे उतरके BORATORNARRATOR म * For Private and Personal Use Only
SR No.020325
Book TitleDwadash Parv Vyakhtyana Bhashantaram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1926
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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