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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ―――― ( १९ ) अभयदयाणं - - प्राणीमात्र को अभयदान देनेवाले हैं, चक्खुदयाणं -- ज्ञानरूप नेत्रों के देनेवाले हैं, मग्गदयाणं -- आत्मकल्याणकर मार्ग को देनेवाले हैं, सरणदयाणं -- शरणागत की दया रखनेवाले हैं, बोहिदयाणं - - सम्यक्त्वदान देनेवाले हैं, धम्मयाणं --- विशुद्धधर्म का उपदेश देनेवाले हैं, धम्मदेसयाणं- असली धर्म का मार्ग बतानेवाले हैं, धम्मनायगाणं धर्म के नायक (नेता) हैं, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धम्मसारहीणं-- धर्मरूपी रथ को चलाने में सारथी के समान हैं, धम्मवरचाउरंतचक्कवट्टीणं- धर्मरूप चक्र से चार गति का नाश करने में चक्रवर्ती के समान हैं, अप्पडिय - वरनाणदंसणधराणं-- किसीसे बाधित नहीं ऐसे केवलज्ञान और केवलदर्शन को धारण करनेवाले हैं, जिनसे चर या अचर किसी पदार्थ का स्वरूप छिपा हुआ नहीं है. वियट्टछउमाणं । - - छद्मस्थ अवस्था से रहित हैं अर्थात् जिन्होंने घातिकर्मों का सर्वथा विनाश कर दिया है । जिणाणं जावयाणं- स्वयं राग, द्वेष और कर्म रूप दुश्मन को जीतनेवाले और दूसरों को जितानेवाले हैं For Private And Personal Use Only
SR No.020303
Book TitleDevasia Raia Padikkamana Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantvijay
PublisherAkhil Bharatiya Rajendra Jain Navyuvak Parishad
Publication Year1964
Total Pages188
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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