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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२०) तिन्नाणं तारयाणं--संसारसमुद्र को स्वयं तिरनेवाले और दूसरों को तारनेवाले हैं, बुद्धाणं बोहयाणं-स्वयं वास्तविक तत्व को जाननेवाले और दूसरों के तत्त्व का ज्ञान करानेवाले हैं, मुत्ताणं मोअगाणं---स्वयं कर्म से रहित हैं और दूसरों को कर्म से रहित करनेवाले हैं, सव्वन्नूणं सव्वदरिसीणं--आप स्वयं सब वस्तु को जाननेवाले सर्वज्ञ हैं और सब वस्तु को देखनेवाले सर्वदर्शी हैं, तथा । सिवमयलमरुअमणंत--निरुपद्रव, अचल, नीरोग, अनन्त, मक्खयमव्वाबाहमपुणरावित्ति-अक्षय (अविनाशी), पीडा रहित और जन्म-मरण से रहित, सिद्धिगइनामधेयं ठाणं संपत्ताणं-ऐसे मोक्षगति नामक स्थान को पाये हुये हैं. नमो जिणाणं जिअभयाणं--समस्त भयों को जीतने वाले जिनेश्वरों को मेरा नमस्कार हो। जे अ अईया सिद्धा-भूतकाल में जो सिद्ध हो चुके हैं जे अ भविस्संति णागए काले-जो आगामी काल में सिद्ध होंगे और संपइयवट्टमाणा---वर्तमानकाल में जो सिद्ध हो रहे हैं सव्वे तिविहेण वंदामि--उन सब को मैं त्रिविधयोग से वन्दना करता हूँ ॥१॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020303
Book TitleDevasia Raia Padikkamana Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantvijay
PublisherAkhil Bharatiya Rajendra Jain Navyuvak Parishad
Publication Year1964
Total Pages188
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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