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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६१८ चिकित्सा-चन्द्रोदय । - . क्षय-रोगीके कफको जलते हुए कोयलेपर डाल दो। अगर उससे घोर दुर्गन्ध उठे, तो रोगीको असाध्य समझो और उसका इलाज हाथमें मत लो। कफ पानीके भरे बर्तनमें डालनेसे डूब जावे, पैंदेमें बैठ जावे, आगपर डालनेसे दुर्गन्ध दे, बाल गिरने लगें, पतले दस्त लगें, या आमके दस्त आवें, आँखें और पेशाब सफ़ेद हों. खाँसी और जुकामका ज़ोर हो, भोजनपर रुचि न हो, कफ निकलने में बहुत तकलीफ हो, नेत्र आँखोंके खड्डोंमें घुस जावें, कमजोरी बहुत हो जावे, ज्वरका जोर जियादा हो, तब समझ लो कि रोगी नहीं बचेगा। उसका इलाज हाथमें लेकर वृथा बदनामी कराना है।। जिस रोगीको दम-दमपर पतली टट्टी लगती हों, कफके बड़े-बड़े ढप्पे गिरते हों, श्वास बढ़ रहा हो, हिचकियाँ चलती हों, पहले पैरोंपर सूजन आई हो या और अंग सूज गये हों, कन्धों और पसवाड़ों वगैर में पीड़ा बहुत हो, रोगीको चैन न हो, तो समझ लो कि, रोगी हरगिज़ नहीं बचेगा। जिस रोगीको अच्छा वैद्य अच्छी-से-अच्छी दवा दे, पर उसका रोग न घटे, दिन-पर-दिन उपद्रव बढ़ते जावें; कमजोरी अधिक होती जावे, और रोगी अपने मुंहसे बारम्बार कहता हो कि, मैं अब नहीं बचूँ गा, वह रोगी हरगिज़ नहीं बचेगा, अतः ऐसे रोगीका इलाज कभी भी न करना चाहिये। प्र०--डाक्टर लोग क्षय-रोगकी पैदाइश किस तरह कहते हैं ? . उ०–डाक्टर कहते हैं, क्षयका प्रधान कारण कीटाण या जर्म (Germs ) हैं । इनको अँगरेजीमें बैसीलस टूबरक्लोसिस (Bacillus Tuber-culosis) कहते हैं । डाक्टर कहते हैं कि फेंफड़ोंमें इन कीटाणुओंके हुए बिना क्षय रोग नहीं होता । इन कीड़ोंके रहनेकी जगह क्षय-रोगीका थूक-खखार या कफ वगैरः हैं । क्षय-रोगी इधर-उधर चाहे जहाँ थूक देते हैं, उसमेंसे ये कीटाणु, स्वस्थ मनुष्य के शरीरमें, उसके साँस For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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