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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६१६ क्षय-रोगपर प्रश्नोत्तर। लेनेके समय, नाक द्वारा, भीतर घुस जाते हैं अथवा भोजनपर बैठकर भोजन-द्वारा अच्छे-भले मनुष्यके आमाशयमें पहुँच जाते हैं। अगर वंशमें किसीको क्षय-रोग होता है और उसके थूक-खखार आदिसे बचाव नहीं रखा जाता, तो उसके थूक वगैरःके कीड़े दूसरों के अन्दर प्रवेश करके क्षय पैदा करते हैं। ___ हवा और धूलमें मिलकर जिस तरह और रोगोंके कीड़े एक जगहसे दूसरी जगह जा पहुँचते हैं, उसी तरह इस क्षय-रोगके कीड़े भी क्षय-रोगीके कफसे निकलकर, हवामें मिलकर, तन्दुरुस्त आदमियोंके नाक और मुंहमें घुसकर, फेंफड़ों तक जा पहुँचते हैं और फिर वहाँ अपना डेरा जमा लेते हैं। __ ये कीटाणु प्रायः नित्य बढ़ते रहते हैं और थूक द्वारा बाहर निकल-निकलकर भले-चंगोंको मारते हैं। ये इतने छोटे होते हैं कि, उनकी छुटाईका कोई हिसाब भी नहीं लगाया जा सकता। ये नङ्गी आँखों ( Naksal eyes ) से नहीं दीखते । हाँ, खुर्दबीन या सूक्ष्मदर्शक यंत्रसे, जिसे अंगरेजीमें माईक्रोसकोप कहते हैं, वे अच्छी तरह नजर आते हैं। __ जब क्षय-रोगी आराम हो जाता है, तब डाक्टर लोग अक्सर क्षय-रोगीके खून और थूककी परीक्षा .खुर्दबीनसे करते हैं। अगर उनमें क्षयके कीटाणु नहीं पाये जाते, तब उसे रोगमुक्त समझते हैं । हाँ, अगर ये पचीस हजार कीटाणु, एक सीधमें, पंक्ति लगाकर, एक दूसरेसे सटकर, रखे जावें तो ये एक इञ्च लम्बी जगहमें आजावेंगे। इसी तरह एक पदम जीवाणुओंका वजन सिर्फ एक माशे-भर होता है । ये बहुत जल्दी बढ़ते हैं। २४ घण्टेमें एक कीटाणुसे तीन पदमके क़रीब हो जाते हैं। इस तरह ये बढ़ते-बढ़ते रोगीके फेफड़ोंमें घाव पैदा करके उन्हें खराब कर देते हैं। घाव हो जानेसे ही रोगीके थूकमें खून और पीप आने लगते हैं। रोगी कमजोर होता जाता है For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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