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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चिकित्सा-चन्द्रोदय। सूखता है । हाथोंकी हथेली और पैरोंके तलबोंमें जलन होती है। कभी-कभी कन्धोंके दर्दके मारे रोगी बेचैन-सा हो जाता है । या तो नींद आती ही नहीं या बहुत ज़ियादा आती है । पहले तो जीभ सफेद दीखती है, पर पीछे लाल नज़र आती है । आँखें भीतरको घुस जाती हैं। उनका रंग सफेद हो जाता है । होठ काले या नीले हो जाते हैं। चेहरा लाल हो जाता है। छातीमें सुई चुभानेकी-सी पीड़ा होती है । रोगी बड़ी तकलीफसे छातीको पकड़कर खाँसता है । बड़ी मुश्किलसे थोड़ा झागदार और चेपदार कफ सुर्जी-माइल निकलता है। प्र०--क्षयके लक्षण विशेष रूपसे कहिये। उ०--रोग होते ही जुकाम होता है, फिर सूखी खाँसी आने लगती है, यद्यपि उस समय वह पैदा ही होती है, अपने ज़ोरमें नहीं होती; तो भी उसके मारे रोगीको बड़ी तकलीफ होती है। रोगीके मुखसे पतला-पतला और चिकना-चिकना बलगम निकलने लगता है । इसके भी बाद, उस कफमें खून मिलकर आने लगता है, इसलिए वह स्याहीमाइल होता है । इसके भी बाद, कभी भूरी, कभी पीली और कभी हरी पीप आने लगती है। बहुत दिन बीतनेपर खून-ही- खून ज़ियादा आने लगता है । उसमें घोर दुर्गन्ध होती है। पीपकी बदबू ऐसी होती है, जैसी कि हड्डीके जलनेकी होती है । जिनकी पीप बहुत ही जियादा सड़ जाती है या जिनका जुकाम रोगके शुरूमें बहुत दिन तक बना रहता है, उनको कफ थूकनेके समय खुद ही बदबू मालूम होती है । जो बदबूदार खून कफके साथ आता है, वह पानीमें डालनेसे डब जाता है। रोगीके कफकी परीक्षा, पानीसे गिलास भरकर, उसमें कफ डालकर की जाती है । हकीम लोग जलके भरे गिलासमें कफको डालते हैं। उसे बिना हिलाये-डुलाये, ३।४ घण्टे बाद देखते हैं। अगर कफ पानीपर तैरता रहता है, तो रोगको साध्य मानते हैं; डब जाता है, तो असाध्य मानते हैं। अगर इस तरह जलकी परीक्षासे निर्णय नहीं होता, तो जलते हुए कोयलेपर कफको डालते हैं। अगर For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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