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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir क्षयरोगपर प्रश्नोत्तर। ६६ उसके जलनेसे भयङ्कर बदबू उठती है तो उसे “सिल हक़ीक़ी" कहते हैं । यह अवस्था भयंकर होती है। रोगीका आराम होना असम्भव समझा जाता है । कोई कहते हैं, अगर कफके जलनेपर उससे हड्डीके जलनेकी-सी बू या गन्ध आवे तो समझो कि, रोगीको ठीक "क्षय” रोग हुआ है । क्योंकि क्षयमें ज्वर और खाँसी प्रभृति लक्षण देखने में आते हैं । जीर्ण ज्वर प्रभृतिमें भी ये ही लक्षण होते हैं। इसलिये क्षय-ज्वर और दूसरे ज्वर या क्षयकी खाँसी और अन्य खाँसियोंका पहचानना कठिन होता है। प्र०-क्षयवालेके कफके सम्बन्धमें और भी कहिये। उ०-लिख आये हैं, कि कफ चिपचिपा होता है । कभी वह अत्यन्त गाढ़ा गोंद-सा होता है, कभी मटमैला-सा खून-मिला होता है। उसमें गोंदकी तरह इतना चेप होता है, कि जिस वर्तनमें रोगी कफ थूकता है, उसके उल्टा कर देनेपर भी वह नहीं छूटता। अगर पीप कम पका होता है, तो उसके साथ खून आता है और घावके-से खुरण्टके छिलके निकलते हैं । अगर आप किसी घड़ीसाज़से खुर्दबीन शीशा ( microscope ) लाकर बर्तन में देखें, तो आपको उसमें क्षयरोगको पैदा करनेवाले कीटाणु या जर्म (Germs ) दिखाई देंगे। इनके सिवा खून और चर्बी प्रभृति और कितने ही पदार्थ दीखेंगे। प्र०-आप क्षयके लक्षण साफ तौरपर एक बार और बताइये, पर मुख्तसिरमें। ___ उ०-इस रोगवालेको बुखार हर वक्त चढ़ा रहता है। खाना खानेके बाद कुछ और बढ़ जाता है। इसके सिवा, जुकाम, खाँसी, कफका बहुतायतसे आना, कफके साथ पीप आना, बालोंका बढ़ना, कन्धों और पसलियोंमें वेदना, हाथ-पैरों में जलन, या तो भूख लगना ही नहीं या बहुत लगना, गालों या चेहरेपर ललाई, बदनमें रूखापन या खुश्की, मुँहसे खून आना वगैरः लक्षण अवश्य होते हैं। रोगीकी For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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