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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राजयक्ष्मा और उराक्षतकी चिकित्सा । ५१७ मधु, एक तोले मिश्री, १२० दाने कालीमिर्चोंके और आधी पीपर-इन सबको पीसकर मिला दो और एक-दिल कर लो। इसीको पना कहते हैं। इसको किसी दवाके बाद या अकेला ही सन्ध्या-सवेरे पिलानेसे खून बढ़ता है, इसमें रत्ती भर भी सन्देह नहीं। इस पनेके पीनेसे अनेकों हाड़ोंके पञ्जर मोटे-ताजे और तन्दुरुस्त हो गये। उनका क्षय भाग गया। पर खाली इस पनेसे ही काम नहीं चल सकता । इसके पिलानेसे पहले, कोई यक्ष्मा-नाशक खास दवा भी देनी चाहिये। अगर खूनकी कमी ही हो, कोई उपद्रव न हो और रोगका जोर न हो, तो केवल इस पनेसे ही क्षय आराम होते देखा है। खानेको हल्का भोजन देना चाहिये। मांस-क्षयके लक्षण । मांस-क्षय होनेसे शरीर एकदमसे दुबला-पतला हो जाता और काम-धन्धेको दिल नहीं चाहता, क्योंकि शरीर शिथिल हो जाता है, नींद नहीं आती, किसी-किसीको बहुत ज़ियादा नींद आती है, बातें याद नहीं रहती और शरीरमें ताकत नहीं रहती। मेद-क्षयके लक्षण । मेदकी कमी होनेसे शरीर थका-सा रहता है, कहीं दिल नहीं लगता, बदन टूटता और चलने-फिरनेकी ताक़त कम हो जाती है। श्वास और खाँसीका जोर रहता है। खानेको दिल नहीं चाहता, और अगर कुछ खाया जाता है, तो हज़म भी नहीं होता। मेद बढ़ानेवाले उपाय । "हारीत संहिता" में लिखा है,--अनूपदेशके जीवोंका मांस, हलके अन्न, घी, दूध, कल्प-संज्ञक शराब और मधुर पदार्थ, 'सितो For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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