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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६५ . चिकित्सा-चन्द्रोदय । पलादि चूर्ण', पीपरोंके साथ पकाया हुआ बकरीका दूध--ये सब मेद बढ़ानेको उत्तम हैं। खुलासा यह कि, घी, दूध, मिश्री, मक्खन और मीठे शर्बत, जांगलदेशके जानवरोंके मांसका रस, हल्के और जल्दी हज़म होनेवाले अन्न, सितोपलादि चूर्ण, शहद में मिलाकर सवेरे-शाम चाटना और ऊपरसे मिश्री मिला हुआ बकरीका दूध पीना- मेदक्षयवाले क्षय-रोगीको परम हितकर हैं। इनसे मेद बढ़ती और क्षय नाश होता है। अस्थि-क्षयके लक्षण । अस्थि या हड्डियोंके क्षय होनेसे मन उदास रहता है, कामको दिल नहीं चाहता, वीर्य कम हो जाता है, मुटाई नाश होकर शरीर दुबला हो जाता है, संज्ञा नहीं रहती, शरीर काँपता है, वमन होती हैं, शरीर सूखता है, सूजन आती है और चमड़ा रूखा हो जाता है इत्यादि। __नोट--राजयक्ष्मा या जीर्णज्वर अगर बहुत दिनों तक रहते हैं, तो आदमीकी हड्डियाँ पीली पड़ जाती हैं । विशेषकर, हाथ, पैर, कमर और पसलियोंके हाड़ तो अवश्य ही पतले हो जाते हैं। हड्डियोंके पतले पड़नसे ऊपर लिखे लक्षण होते हैं। अस्थि-वृद्धिके उपाय । - हारीत कहते हैं,--पके हुए घी और दूध अस्थि-वृद्धिके लिये अच्छे हैं । सब तरहके मीठे अन्न और जांगल देशके जीवोंके मांस भी हितकारी हैं। . . . शुक्र-क्षयके लक्षण । शुक्र या वीर्यके क्षय या कमीसे भ्रम होता है, किसी बातपर दिल' नहीं जमता, अकस्मात् चिन्ता या फिक्र खड़ी हो जाती है, धीरज नहीं रहता, रोगी जीवनसे निराश हो जाता है, हाथ-पैर और For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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