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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राजयक्ष्मा और उरःक्षतकी चिकित्सा। अनेक अधूरे या अधकचरे वैद्य यक्ष्माके निदान-लक्षण मिलाकर, रोगीको यक्ष्मा-नाशक उत्तमोत्तम औषधियाँ तो दमादम दिये जाते हैं, पर कौन-कौनसी धातुएँ क्षीण हो गई हैं, इसका ख्याल ही नहीं करते, इसीसे उनको सफलता नहीं होती, उनके रोगी आराम नहीं होते । यह काया इन्हीं रस-रक्त आदि सातों धातुओंपर ठहरी हुई है । अगर ये क्षीण होंगी, तो शरीर कैसे रहेगा ? यहाँ यह रस-रक्त आदि धातुओंके क्षय होनेके लक्षण और उनकी चिकित्सा साथ-साथ लिखते हैं। रस-क्षयके लक्षण । अगर रसका क्षय होता है, तो बड़ी खुश्की रहती है, अग्नि मन्द हो जाती है, भूख नहीं लगती, खाना हजम नहीं होता, शरीर काँपता है, सिरमें दर्द होता है, चित्त उदास रहता है, यकायक दिल बिगड़कर रंज या सोच हो जाता है और सिर घूमता है। . रस बढ़ानेवाले उपाय । . .. अगर क्षय-रोगीके शरीरमें रस या रक्तकी कमीके चिह्न पाये जावें, तो भूलकर भी रस-रक्त-विरोधी दवा न देनी चाहिये, बल्कि इनको बढ़ानेवाली दवा देनी चाहिये । हारीत कहते हैं,--जांगल देशके जीवोंका मांस खाना, गिलोय, अदरख या अजवायनमें पकाया हुआ क्वाथ या जल पीना और कालीमिर्चों के साथ पकाया हुआ दूध रातके समय पीना अच्छा है । इनसे रसकी वृद्धि होती और क्षय-रोग नाश होता है । अन्नोंमें गेहूँ, जौ और शालि चाँवल भी हित हैं। नीचे लिखे हुए उपाय परीक्षित हैं:-- (१) गिलोयका सत्त अदरखके स्वरसके साथ चटानेसे रस-रक्तकी वृद्धि होती है। For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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