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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चिकित्सा-चन्द्रोदय । इसे गर्भाशयका बाहरी मुँह कहते हैं । इसे अँगुलीसे छू सकते हैं। ___ गर्भाशय भीतरसे पोला होता है। उसके अन्दर बहुत जगह नहीं होती, क्योंकि अगली-पिछली दीवारें मिली रहती हैं। गर्भ रह जानेपर गर्भाशयकी जगह बढ़ने लगती है । ___ गर्भाशयके ऊपरी भागमें, दाहिनी-बाई ओर डिम्ब-प्रनालियोंके मुख होते हैं । जिस तरह डिम्ब-प्रन्थियाँ दो होती हैं, उसी तरह डिम्बप्रनाली भी दो होती हैं। एक दाहिनी ओर दूसरी बाई ओर। ये दोनों प्रनालियाँ या नालियाँ गर्भाशयसे आरम्भ होकर डिम्ब-ग्रन्थियों तक जाती हैं । जब डिम्ब-ग्रन्थियोंसे कोई डिम्ब निकलता है, तब वह डिम्ब-प्रनाली झालरके सहारे डिम्ब प्रनालीके छेद तक और वहाँसे गर्भाशय तक पहुँचता है। योनि । योनि वह अङ्ग है, जिसमें होकर मासिक खून बाहर आता, मैथुनके समय लिंग अन्दर जाता और प्रसवकालमें बच्चा बाहर आता है। वास्तवमें, योनि भी एक नली है, जिसका ऊपरी सिरा पेड़ में रहता है और गर्भाशयकी गर्दनके नीचेक भागके चारों ओर लगा रहता है। गर्भाशयका बाहरी मुख इस नलीके अन्दर रहता है। __ योनिकी लम्बाई तीन या चार इंच होती है और उसकी दीवारें एक-दूसरेसे मिली रहती हैं। इसीसे कोई चीज़ या कीड़ा-मकोड़ा आसानीसे अन्दर जा नहीं सकता। योनिकी लम्बाई-चौड़ाई दबाव पड़नेपर जियादा हो सकती है। द्वारके पाससे योनि तंग होती है, बीचमें चौड़ी होती है और गर्भाशयके पास जाकर फिर तंग हो जाती है। योनिके द्वारपर योनि-संकोचनी पेशियाँ होती हैं जो उसे सुकेड़ती हैं। योनिकी दीवारोंपर एक बड़ा शिराजाल या नस-जाल है, जो मैथुनके समय खूनसे भर जाता है। इसीक कारणसे मैथुनके समय योनिकी दीवारें पहलेसे मोटी हो जाती हैं। For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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