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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नर-नारीकी जननेन्द्रियोंका वर्णन । ५३५ बाहरी छेदके ऊपर एक छोटा अंकुर होता है। इसे भग-नासा या भगकी नाक कहते हैं । जिस तरह मर्दके लिंग होता है, उसी तरह स्त्रीके यह होता है । लिंग बड़ा होता है और यह छोटा होता है । जब मैथुन किया जाता है, तब इसमें खून भर आता है, इसलिये लिंगकी तरह यह भी कड़ा हो जाता है। इसमें लिंगकी रगड़ लगनेसे बेतहासा आनन्द आता है । जब मैथुन हो चुकता है, तब खून लौट जाता है, इसलिये यह भी लिंगकी तरह ढीला हो जाता है। डिम्ब-ग्रन्थियाँ। जिस तरह मदके दो अण्ड या शुक्र-ग्रन्थियाँ होती हैं, उसी तरह स्त्रीके भी ऐसे ही दो अङ्ग होते हैं। इनमें डिम्ब बनते हैं, इसलिये इन्हें डिम्ब-ग्रन्थियाँ कहते हैं । स्त्रीके डिम्ब और शुक्राणुके मिलनेसे ही गर्भ रहता है। ये डिम्ब-ग्रन्थियाँ वस्ति-गह्वर या पेड़ की पोलमें रहती हैं। एक ग्रन्थि गर्भाशयकी दाहिनी ओर और दूसरी बाई ओर रहती है। दोनों ग्रन्थियोंमें अन्दाज़न बहत्तर हजार डिम्ब-कोष होते हैं और हरेक कोषमें एक-एक डिम्ब रहता है। डिम्ब-ग्रन्थियोंके भीतर छोटी-बड़ी थैलियाँ होती हैं, उन्हींको डिम्बकोष कहते हैं । गर्भाशय । यह वह अङ्ग है जिसमें गर्भ रहता है । यह वस्ति-गह्वर या पेड़ की पोलमें रहता है । इसके सामने मूत्राशय और पीछे मलाशय रहता है । गर्भाशयके दोनों बगल, कुछ दूरीपर डिम्ब-प्रन्थियाँ होती हैं। गर्भाशयका आकार कुछ-कुछ नाशपातीके जैसा होता है, परन्तु स्थूल भाग चपटा होता है । गर्भाशयकी लम्बाई ३ इञ्च, चौड़ाई २ इञ्च और मुटाई १ इञ्च होती है । वजनमें यह अढ़ाई सेर साढ़े तीन तोले तक होता है। गर्भाशयका ऊपरी भाग मोटा और नीचेका भाग, जो योनिसे जुड़ा रहता है, पतला होता है। नीचेके भागमें एक छेद होता है, For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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