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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्त्री-रोगोंकी चिकित्सा-प्रसूतिका-चिकित्सा । ५०७ प्रसूताको पथ्य पालनकी आवश्यकता । - सूतिका रोग बड़े कठिन होते और बड़ी दिक्कतसे आराम होते हैं । अगर पथ्य पालन न किया जाय, तो आराम होना कठिन ही नहीं, असम्भव है। जिसका सारा दूषित खून निकल गया हो, वह एक महीने तक चिकना, पथ्य और थोड़ा भोजन करे, नित्य पसीने ले, शरीरमें तेल मलवावे और पथ्यमें सावधान रहे। पथ्य--लंघन, हल्के पसीने, गर्भाशय और कोठोंका शोधन, उबटन, तैलपान, चटपटे, कड़वे और गरम पदार्थों का सेवन, दीपन-पाचन पदार्थ, शराब, पुराने साँठी चाँवल, कुल्थी, लहसन, बैंगन, छोटी मूली, परवल, बिजौरा, पान, खट्टा-मीठा अनार तथा अन्य कफवात-नाशक पदार्थ प्रसूताके लिये हित हैं । किसी-किसीने पुराने चाँवल, मसूर, उड़दका जूस, गूलर और कच्चे केलेका साग आदि भी हितकर लिखे हैं । - अपथ्य-भारी भोजन, आग तापना, मिहनत करना, शीतल हवा, मैथुन, मल-मूत्रादि रोकना, अधिक खाना और दिनमें सोना आदि हानिकारक हैं। चार महीने बीत जाय और कोई भी उपद्रव न रहे, तब परहेज़ त्यागना चाहिये। उपद्रवविशुद्धाश्च विज्ञाय वरवणिंनीम् । उर्ध्वं चतुर्यो मासेभ्यः परिहारं विवर्जयेत् ॥ सूतिका रोगोंकी चिकित्सा । सूतिका रोग नाशार्थ वात-नाशक क्रिया करनी चाहिये । जिस रोगका ज़ोर हो, उसीकी दवा देनी चाहिये । दस दिन तक वात-नाशक दवाओंके साथ औटाया हुआ दूध पिलाना चाहिये । सिरसकी लकड़ीकी दाँतुन करानी चाहिये। सूतिका रोगोंकी चिकित्सा हमने "चिकित्सा-चन्द्रोदय" दूसरे भाग, अठारहवें अध्यायके पृष्ठ ४२२-४२७ For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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