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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०८ चिकित्सा-चन्द्रोदय । में लिखी है। मक्कल-शूलकी चिकित्सा हमने “स्वास्थ्यरक्षा" पृष्टः २३२-२३३ में लिखी है। लेकिन जिनके पास “स्वास्थ्यरक्षा" न होगी, वे तकलीफ पायेंगे; इसलिये हम उसे यहाँ भी लिखे देते हैं। मकल शूल। बच्चा और जेरनालके योनिसे बाहर आते ही, अगर दाई प्रसूताकी योनिको तत्काल भीतर दबा नहीं देती, देर करती है, तो प्रसूताकी योनिमें वायु घुस जाती है। वायुके कुपित होनेसे हृदय और पेड़ में शूल चलता, पेटपर अफारा आ जाता एवं ऐसे ही और भी वायुके विकार हो जाते हैं। वायुके योनिमें घुस जानेसे हृदय, सिर और पेड़ में जो शूल चलता है, उसे "मकल' कहते हैं। ___ "भावप्रकाश" में लिखा है,--प्रसूता स्त्रियोंके रुक्ष कारणोंसे बढ़ी हुई वायु-तीक्ष्ण और उष्ण कारणोंसे सुखाये हुए खूनको रोककर, नाभिके नीचे, पसलियोंमें, मूत्राशयमें अथवा मूत्राशयके ऊपरके भागमें गाँठ उत्पन्न करती है। इस गाँठके होनेसे नाभि, मूत्राशय और पेटमें दर्द चलता है, पक्वाशय फूल जाता और पेशाब रुक जाता है। . इसी रोगको “मकल' कहते हैं। चिकित्सा । (१) जवाखारका महीन चूर्ण सुहाते-सुहाते गरम जल या घीके साथ पीनेसे मक्कल आराम होता है। (२) पीपर, पीपरामूल, कालीमिर्च, गजपीपर, सोंठ, चीता, चव्य, रेणुका, इलायची, अजमोद, सरसों, हींग, भारंगी, पाढ़, इन्द्रजौ, जीरा, बकायन, चुरनहार, अतीस, कुटकी और बायबिडङ्ग--इन २१ दवाओंको "पिप्पल्यादि गण" कहते हैं । इनके काढ़ेमें "सेंधानोन" डालकर पीनेसे मक्कल शूल, गोला, ज्वर, कफ और वायु क़तई नष्ट हो जाते हैं तथा अग्नि दीपन होती और आम पच जाता है। For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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