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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०६ चिकित्सा-चन्द्रोदय। सूतिका रोग। अङ्गोंका टूटना, ज्वर, खाँसी, प्यास, शरीर भारी होना, सूजन, शूल और अतिसार-ये रोग प्रसूताको विशेषकर होते हैं। यह रोग प्रसूताको होते हैं, इसलिये "सूतिका रोग" कहे जाते हैं। "वैद्यरत्न"में लिखा है-- अंगमदी ज्वरः कम्पः पिपासा गुरुगात्रता। शोथः शूलातिसारौ च सूतिकारोग लक्षणम् ॥ शरीर टूटना, ज्वर, कँपकँपी, प्यास, शरीर भारी होना, सूजन, शूल और अतिसार ये प्रसूति-रोगके लक्षण हैं। “बङ्गसेन" में लिखा है प्रलापो वेपथुर्यस्याः सूतिका सा उदाहृता। जिसमें प्रलाप--आनतान बकना और कम्प-कँपकँपी आनाये लक्षण हों, उसे "सूतिका रोग" कहते हैं। नोट-कम्प होना सभीने लिखा है, पर भावमिश्रने "कम्प"के स्थानमें "कास" यानी खाँसी लिखी है । __ ज्वर अतिसार, सूजन, पेट अफरना, बलनाश, तन्द्रा, अरुचि और मैं हमें पानी भर-भर आना इत्यादि रोग स्त्रीको मांस और बलकी क्षीणतासे होते हैं। ये सूतिका रोगोंके विशेष निदान हैं । ये रोग जब सूतिकाको होते हैं, तब सूतिका रोग कहे जाते हैं। इन रोगोंमेंसे यदि कोई रोग मुख्य होता है, तो ज्वर आदि अन्य रोग उसके “उपद्रव" कहलाते हैं। ___ स्त्री कबसे कब तक प्रसूता ? बच्चा जननेके दिनसे डेढ़ महीने तक अथवा रजोदर्शन होने तक स्त्रीको "प्रसूता" कहते हैं । यह धन्वन्तरिका मत है । कहा है-- प्रसूता सार्धमासान्ते दृष्ट वा पुनरावे। सूतिका नामहीना स्यादिति धन्वन्तरेर्मतम् ।। For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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