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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०२ चिकित्सा-चन्द्रोदय । मशककी तरह आड़ा हो या पेट हवासे फूला हो, तो पेटको चीरकर, आँतें निकालकर, शिथिल हुए गर्भको बाहर खींच ले । जो कूले या साथल अटके हों, तो कूलोंको काटकर निकाल ले । ___ मरे हुए गर्भके जिस-जिस अङ्गको वैद्य मथे या छेदे या चीरे, उन्हें अच्छी तरहसे काट-काटकर बाहर निकाल ले। उनका कोई भी अंश भीतर न रहने दे। काटते और निकालते समय एवं पीछे भी चतुराईसे स्त्रीकी रक्षा करे। गर्भ निकल आवे, पर अपरा या जेर अथवा अोलनाल न निकले, तो उसे काले साँपकी काँचलीकी धूनी देकर या उधर लिखे हुए लेप वगैरः लगाकर निकाल ले। अगर इस तरह न निकले, तो हाथमें तेल लगाकर हाथसे निकाल ले । पसवाड़े मलनेसे भी जेर निकल आती है। ऐसे समयमें दाई स्त्रीको हिलावे, उसके कन्धों और पिंडलियोंको मले और योनिमें खूब तेल लगावे। - अपरा या अोलनाल न निकलनेसे हानि । बच्चा हो जानेपर अगर जेर या अम्बर न निकले, तो वह अम्बर दर्द चलाती, पेट फुलाती और अग्निको मन्दी करती है। जेर निकालनेकी तरकीबें । अँगुलीमें बाल बाँधकर, उससे कंठ घिसनेसे अम्बर गिर जाती है । साँपकी काँचली, कड़वी तूम्बी, कड़वी तोरई और सरसों - इन्हें एकत्र पीसकर और सरसोंके तेलमें मिलाकर, योनिके चारों ओर 'धूनी देनेसे अम्बर गिर जाती है । प्रसताके हाथ और पाँवके तलवोंपर कलिहारीकी जड़का कल्क लेप करनेसे जेर गिर जाती है। चतुर दाई अपने हाथकी अँगुलियोंके नख काटकर, हाथमें घी लगाकर, धीरे-धीरे हाथको योनिमें डालकर अम्बरको निकाल ले। जब मरा हुआ गर्भ और ओलनाल दोनों निकल आवें तब, For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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