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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्त्री-रोगोंकी चिकित्सा-मूढगर्भ-चिकित्सा। ५०१ .. अगर चोट वगैरः लगनेसे स्त्री मर जाय और उसकी कोखमें गर्भ फड़के, तो वैद्य स्त्रीको चीरकर बालकको निकाल ले। अगर स्त्री जीती हो और गर्भ न निकलता हो, तो वैद्य गर्भाशयको बचाकर और गर्भिणीकी रक्षा करके, एक साथ फुर्तीसे शस्त्र चलानेमें दक्ष वैद्य चतुराईसे काम करे। ऐसा वैद्य धन-धान्य, मित्र और यशका भागी होता है। ___ "सुश्रुत"में लिखा है, अगर बालक गर्भमें मर जाय, तो वैद्य उसे शीघ्र ही जैसे हो सके साबत ही निकाल ले। विद्वान् वैद्यको इसमें दो घड़ीकी भी देर करना उचित नहीं, क्योंकि गर्भ में मरा हुआ बालक शीघ्र ही माताको मार डालता है। वैद्यको अस्त्रसे काम लेते समय मंडलाय नामक यंत्रसे काम लेना चाहिये । क्योंकि इसकी नोक आगेसे तेज़ नहीं होती, पर वृद्धिपत्र यंत्रसे काम न ले, क्योंकि इस औजारकी नोक आगेसे तेज होती है। इससे गर्भवतीकी अाँतें आदि कटकर मर जानेका भय है। हाँ, इस चीर-फाड़के काममें वही हाथ लगावे, जिसे मनुष्य-शरीरके भीतरी अङ्गोंका पूरा ज्ञान हो । लिख आये हैं, कि जीता हुआ बालक गर्भ में रुका हो, तो उसे कदाचित भी शस्त्रसे न काटना चाहिये, क्योंकि जीते बालकको काटनेसे बालक और माँ दोनों मर जाते हैं। गर्भमें बालक मर गया हो, तो वैद्य स्त्रीको मीठी-मीठी हितकारी बातोंसे समझाकर, मंडलाग्र शस्त्र या अँगुली शस्त्रसे बालकका सिर विदारण करके, खोपड़ीको शंकुसे पकड़कर अथवा पेटको पकड़कर अथवा कोखसे पकड़कर बाहर खींच ले। अगर सिर छेदनेकी जरूरत न हो, यदि गर्भका सिर योनिके द्वारपर ही हो, तो उसकी कनपटी या गंडस्थलको पकड़कर उसे खींच ले । यदि कन्धे रुके हों, तो कन्धेके पाससे हाथोंको काटकर निकाल ले। अगर गर्भ For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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