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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्त्रीरोगोंकी चिकित्सा-मूढगर्भ-चिकित्सा। ५०३ दाई स्त्रीके शरीरपर गरम जल सींचे, शरीरपर तेलकी मालिश करे और योनिको भी घी या तेलसे चुपड़ दे। वक्तव्य। यहाँ तक हमने मूढगर्भ-सम्बन्धी साधारण बातें लिख दी हैं। यह विद्या-चीर-फाड़की विद्या-बिना गुरुके सामने सीखे आ नहीं सकती । यद्यपि "सुश्रत"में चीर-फाड़के औजारों और उनके चलानेकी तरकीबें विस्तारसे लिखी हैं । पहले के वैद्य ऐसे सब औज़ार रखते थे और चीर-फाड़का अभ्यास करते थे। पर आजकल, जबसे इस देशमें विदेशी राजा अगरेज़ आये, यह विद्या उड़ गई । डाक्टरोंने इस विद्यामें चरमकी उन्नति की है, अतः जिन्हें मूढगर्भको अस्त्र-चिकित्सासे निकालना सीखना हो, वे किसी सरजरीके स्कूलमें इसे सीखें । कोई भी वैद्य बिना सीखे-देखे चीर-फाड़ न करे । हाँ, दवाओंके जोरसे काम हो सके, तो वैद्य करे। बादकी चिकित्सा ।। पीपर, पीपरामूल, सोंठ, बड़ी इलायची, हींग, भारंगी, अजमोद, बच, अतीस, रास्ना और चव्य--इन सबको पीस-कूटकर छान लो । इस चूर्ण को गरम पानीके साथ स्त्रीको खिलाना चाहिये । दोषोंके निकालने और पीड़ा दूर होनेके लिये, इन्हीं पीपर आदि दवाओंका काढ़ा बनाकर, और उसमें घी मिलाकर प्रसूताको पिलाओ। ____ इन दवाओंको तीन, पाँच या सात दिन तक पिलाकर, फिर धी प्रभृति स्नेह पदार्थ पिलाओ। रातके समय उचित आसव या संस्कृत अरिष्ट पिलाओ। ___ जब स्त्री सब तरहसे शुद्ध हो जाय, तब उसे चिकना, गरम और थोड़ा अन्न दो। रोज़ शरीरमें तेलकी मालिश कराओ । उससे कह दो कि क्रोध न करे। For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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