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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०० चिकित्सा-चन्द्रोदय । नोट-यह मन्त्र सुश्रुतमें है। उससे चक्रदत्त प्रभृति अनेक ग्रन्थकारोंने लिया है। मालूम होता है, यह मन्त्र काम देता है । हमने तो कभी परीक्षा नहीं की । हमारे पाठक इसकी परीक्षा अवश्य करें । (६) जहाँ तक हो, अटके हुए गर्भको ऊपरी उपायों यानी योनिमें धूनी देकर, कोई दवा गले या मस्तक प्रभृतिपर लगा या रखकर निकालें । हमने ऐसे अनेक उपाय “प्रसव-विलम्ब-चिकित्सा' में लिखे हैं । जब उनमेंसे कोई उपाय काम न दे, तब “अस्त्र-चिकित्सा"का आश्रय लेना ही उचित है । पर इस काममें देर करना हिंसा करना है। "वाग्भट्ट"में लिखा है,-अगर गर्भ अड़ जावे तो नीचे लिखे उपायोंसे काम लोः (क) काले साँपकी काँचलीकी योनिमें धूनीमें दो । (ख ) काली मूसलीकी जड़को हाथ या पैरमें बाँधो । (ग) ब्राह्मी और कलिहारीको धारण कराओ। (घ ) गर्भिणीके सिरपर थूहरका दूध लगाओ। (ङ) बालोंको अँगुलीमें बाँधकर, स्त्रीके तालू या कंठको घिसो। , (च) भोजपत्र, कलिहारी, तूम्बी, साँपकी काँचली, कूट और सरसों-इन सबको मिलाकर योनिमें इनकी धूनी दो और इन्हींको पीसकर योनिपर लेप करो। अगर इन उपायोंसे गर्भ न निकले और मन्त्र भी कुछ काम न दे, तब राजासे पूछकर और पतिसे मंजूरी लेकर गर्भको यत्नसे निकालो। सेमलके निर्यासमें घी मिलाकर हाथको चिकना करो और इसीको योनिमें भी लगाओ। इसके बाद, अगर गर्भ न निकलता दीखे, तो हाथसे निकाल लो। अगर हाथसे न निकल सके, तो मरे हुए गर्भ और शल्यतन्त्रको जाननेवाला वैद्य, साध्यासाध्यका विचार करके, धन्वन्तरिके मतसे, उस गर्भको शस्त्रसे काटकर निकाले । For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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