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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्त्री-रोगोंकी चिकित्सा-मूढगर्भ-चिकित्सा। ४६५ (६) कोई मूढ़-गर्भ आड़ा होकर योनि-द्वारमें अड़ा रहता है। (७) कोई गर्दनके टूट जानेसे, ति मुंह करके योनि-द्वारको रोक लेता है। (८) कोई मूढ गर्भ पसलियोंको फिराकर योनि-द्वारमें अटका रहता है। सुश्रुतके मतसे मूढ़ गर्भकी आठ गति । (१) कोई मूढ़ गर्भ दोनों साथलोंसे योनिके मुख में आता है । (२) कोई मूढ गर्भ एक साथल-जाँघसे कुबड़ा होकर दूसरी साथलसे योनिके मुं हमें आता है। (३) कोई मूढ़ गर्भ शरीर और साथलको कुबड़े करके कूलोंसे आड़ा होकर, योनि-द्वारपर आता है। (४) कोई मूढ गर्भ अपनी छाती, पसली और पीठ इनमेंसे किसी एकसे योनि-द्वारको ढककर अटक जाता है। - (५) कोई मूढगर्भ पसलियों और मस्तकको अड़ाकर एक हाथसे योनि-द्वारको रोक लेता है। (६) कोई मूढ़ गर्भ अपने सिरको मोड़कर दोनों हाथोंसे योनिद्वारको रोक लेता है। (७) कोई मूढ़ गर्भ अपनी कमरको टेढ़ी करके, हाथ, पाँव और मस्तकसे योनि-द्वार में आता है। (८ ) कोई मूढ़ गर्भ एक साथलसे योनि-द्वारमें आता और दूसरीसे गुदामें जाता है। असाध्य मूढ़ गर्भ और गर्भिणीके लक्षण । जिस गर्भिणीका सिर गिरा जाता हो, जो अपने सिरको ऊपर न उठा सकती हो, शरीर शीतल हो गया हो, लज्जा न रही हो, For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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