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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६४ चिकित्सा-चन्द्रोदय । मुँहपर आकर अड़ जाता है, न वह भीतर रहता है और न बाहर, इससे जननेवाली स्त्रीकी ज़िन्दगी खतरेमें पड़ जाती है। कोई कहते हैं, वह गर्भ चार प्रकारसे योनिमें आकर अड़ जाता है और कोई कहते हैं, वह आठ प्रकारसे अड़ जाता है। पर यह बात ठीक नहीं, वह अनेक तरहसे योनिमें आकर अड़ जाता है। __ मूढ गर्भकी चार प्रकारकी गतियाँ । (१) जिसके हाथ, पाँव और मस्तक योनिमें आकर अटक जाते हैं वह मूढगर्भ कीलके समान होता है, इसलिये उसे "कीलक" कहते हैं। (२) जिसके दोनों हाथ और दोनों पाँव बाहर निकल आते हैं और बाक़ी शरीर योनिमें अटका रहता है, उसे "प्रतिखुर" कहते हैं। (३) जिसके दोनों हाथोंके बीचमें होकर सिर बाहर निकल आता है और बाक़ी शरीर योनिमें अटका रहता है, उसे "बीजक" कहते हैं। (४) जो दरवाजेकी आगलकी तरह, योनि-द्वारपर आकर अटक जाता है, उसे "परिघ” कहते हैं । मूढगर्भकी पाठ गति। (१) कोई मूढगर्भ सिरसे योनि-द्वारको रोक लेता है। (२) कोई मूढगर्भ पेटसे योनि-द्वारको रोक लेता है। (३) कोई कुबड़ा होकर, पीठसे योनि-द्वारको रोक लेता है। (४) किसीका एक हाथ बाहर निकल आता और बाकी शरीर योनि-द्वारमें अटका रहता है। (५) किसीके दोनों हाथ बाहर निकल आते हैं, बाकी सारा शरीर योनि-द्वारमें अड़ जाता है । For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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