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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - - ४६६ . चिकित्सा-चन्द्रोदय । कोखमें नीली-नीली नसें दीखती हों, वह गर्भको नष्ट कर देती है और गर्भ उसे नष्ट कर देता है। मृतगर्भके लक्षण । मूढ़ गर्भकी दशामें बच्चा जीता भी होता है और मर भी जाता है। अगर मर जाता है, तो नीचे लिखे हुए लक्षण देखे जाते हैं: (१) गर्भ न तो फड़कता है और न हिलता-जुलता है । (२) जननेके समयके दर्द नहीं चलते। (३) शरीरका रंग स्याही-माइल-पीला हो जाता है। (४) श्वासमें बदबू आती है। (५) मरे हुए बच्चे के सूज जानेके कारण शूल चलता है । नोट-बंगसेनने पेटपर सूजन होना और भावमिश्रने शूल चलना लिखा है। तिब्बे अकबरीमें लिखा है, अगर पेटमें गति न जान पड़े, बच्चा हिलता-डोलता न मालूम पड़े, पत्थर-सा एक जगह रखा रहे, स्त्रीके हाथ-पाँव शीतल हो गये हों और साँस लगातार पाता हो, तो बालकको मरा हुआ समझो । पेटमें बच्चेके मरने के कारण । गर्भके पेट में मर जानेके यों तो बहुतसे कारण हैं, पर शास्त्रमें तीन कारण लिखे हैं:(१) आगन्तुक दुःख । (२) मानसिक दुःख । __(३) रोगोंका दुःख । खुलासा यह है कि, महतारीके प्रहार या चोट आदि आगन्तुक कारणोंसे और शोक-वियोग आदि मानसिक दुःखोंसे तथा रोगोंसे पीड़ित होनेके कारण गर्भ पेटमें ही मर जाता है। बहुतसे अज्ञानी सातवें, आठवें और नवें महीनोंमें या बच्चा होनेके दो-चार दिन For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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