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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३२ चिकित्सा-चन्द्रोदय । देगचीमें रखकर, ऊपरसे एक पाव गायका दूध और एक तोले गायका घी भी डाल दो और अत्यन्त मन्दी आगसे पकाओ । इसके बाद उस दूधको कपड़ेमें छान लो । इस दूधको स्त्री ऋतुस्नान करके चौथे दिन सवेरे ही पीवे और दूध-भातका भोजन करे तो अवश्य गर्भ रहे । मैथुन रातको करना चाहिये । यह नुसखा शास्त्रोक्त है, पर हमारा परीक्षित है। (२७) छोटी पीपर, सोंठ, कालीमिर्च और नागकेशर,-इनको बराबर-बराबर लाकर पीस-कूटकर छान लो। इसमेंसे ६ माशे चूर्ण गायके घीमें मिलाकर, ऋतुस्नानके चौथे दिन, अगर स्त्री चाट ले और गतको मैथुन करे, तो अवश्य पुत्र हो । चाहे वह बाँझ ही क्यों न हो। परीक्षित है। नोट-नं० २६ और २७ दोनों नुसख्त "भैषज्यरत्नावली"के हैं। कितनी ही स्त्रियोंको बतलाये, प्रायः सभीको गर्भ रहा । पर यह शर्त है कि स्त्रीको और कोई रोग जैसे, प्रदर-रोग, योनि-रोग, नष्टार्तव-रोग आदि न हों। हमने अनेक स्त्रियों को प्रदर आदि रोगोंसे छुड़ाकर ही यह नुसख सेवन कराये थे। रोगकी दशामें गर्भाधान करना तो महा मूर्खका काम है । "बंगसेन" में लिखा है क्वाथेन हयगन्धायाः साधितं सघृतं पयः । ऋतुस्त्राताऽबला पीत्वा गर्भ धत्ते न संशयः ॥ पिप्पलीशृंगवेरश्च मरिचं केशरं तथा । घतेन सह पातव्यं वन्ध्यापि लभते सुतम् ॥ इसका वही अर्थ है, जो ऊपर लिख पाये हैं। कोई असगन्धको कूट-पीसकर दूध-घीमें पकाते हैं। कोई असगन्धका काढ़ा बनाकर, काढ़े को दूध-घीमें मिलाकर पकाते हैं । जब काढ़ा जलकर दूध-मात्र रह जाता है, दूधको छानकर ऋतुस्नान करके उठी हुई स्त्रीको पिलाते हैं । दूध और घी बछड़ेवाली गायका लेते हैं । असगन्धमें गभोत्पादक शक्कि बहुत है । इसकी अनेक विधि हैं । हमने नं०६ और २६ में दो विधि लिखी हैं । अगर स्त्रीको योनि-रोगप्रसूति न हों,पर ज़रा बहुत रोगकी शंका हो, तो पहले नं०६ की विधिसे ।१० दिन या २१ दिन असगन्ध खानी चाहिये। फिर ऋतुके चौथे दिन नहाकर, उपरकी नं. २६ की विधि से For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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