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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३० चिकित्सा-चन्द्रोदय । (६) असगन्धको कूट-पीसकर छान लो। इसकी मात्रा ४॥ से माशे तक है । ऋतु प्रारम्भ होनेसे पहले इसे सेवन करना चाहिये । पथ्य-दूध-भात ।। (७) पियाबाँसेकी जड़ी सवा दो माशे लेकर, पानीमें पीसकर; थोड़ेसे गायके दूधके साथ पुरुष खावे और तीन दिन तक स्त्रीको भी खिलावे, उसके बाद मैथुन करे; अवश्य गर्भ रहेगा। (८) काले धतूरेके फूल पीसकर और शहद-धीमें मिलाकर खानेसे गर्भ रहता है। (६) एक समन्दर-फल थोड़े-से दहीमें मिलाकर निगल जानेसे अवश्य गर्भ रहता है । यह नुसखा अनेक ग्रन्थोंमें लिखा है। (१०) करंजवेंकी गिरी स्त्रीके दूधमें पीसकर बत्ती बना लो। इसको गर्भाशयमें रखनेसे गर्भधारण-शक्ति हो जाती है। (११) थोड़ी-सी सरसों पीसकर, ऋतु होनेके तीन दिन बाद, शाफा करो । अवश्य गर्भ रहेगा। (१२) एक हथेली-भर अजवायन कई दिन तक खानेसे गर्भ रहता है। (१३) बाजकी बीट कपड़ेमें लगाकर बत्ती-सी बना लो और ऋतुसे निपटकर भगमें रखो । बाज़की बीटमें थोड़ा-सा शहद मिला: कर खाना भी जरूरी है। इन दोनों उपायोंसे गर्भ रहता है। यह नुसता अनेक ग्रन्थोंमें लिखा है। कोई-कोई बिना शहदके भी बाजकी बीट खानेकी राय देते हैं। (१४) ऋतुके बाद, कबूतरकी बीट भगमें रखनेसे गर्भ रहता है। (१५) असगन्ध, नागकेशर और गोरोचन-इन तीनोंको बराबर-बराबर लेकर पीस-छान लो । इसे शीतल जलके साथ सेवन करने या खानेसे गर्भ रहता है । For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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