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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्त्री-रोगोंकी चिकित्सा-बाँझका इलाज । ४२६ (३) गर्भावस्थामें मैथुन करनेसे गर्भ गिर जाता है, इसलिये गर्भकी दशामें मैथुन न करना चाहिये, क्योंकि गर्भाशयका स्वभाव, बाहरको होकर या मुंह खोलकर, वीर्य खींचनेका है। मैथुनसे बच्चा हिलकर भी गिर पड़ता है। (४) नहानेकी अधिकतासे भी गर्भाशय नर्म हो जाता है; इसलिये बालक फिसलकर निकल जाता है। चिकित्सा--जो कारण वीर्यको रोकते, गर्भाशयमें उसे नहीं ठहरने देते, गर्भको क्षीण करते या गिराते हैं, उनसे बचना ही इस भेदका इलाज है। KKKKKKKKKK र गर्भप्रद नुसखे ।। XRINAMANANAANANENERY (१) हाथी-दाँतका बुरादा ४॥ माशे खानेसे गर्भ रहता है । (२) मैथुनसे पहले या उसी समय, हाथीका पेशाब पीनेसे गर्भ रहता है । यह नुसखा अनेक ग्रन्थों में मिलता है। (३) हींगके पेड़का बीज, जिसे बज सीसियालयूस भी कहते हैं, खानेसे अवश्य गर्भ रहता है। हकीम अकबरअली साहब इसे अपना आजमूदा नुसखा लिखते हैं। . (४) सुक, बालछड़, खुसियत्तु स्सालिब (एक प्रकारकी जड़), बिलसाँका तेल, बकायनका तेल और सौसनका तेल--इन सबको पीस-कूटकर मिला लो। फिर इसमें एक कपड़ा ल्हेसकर योनिमें रखो । पीछे निकालकर मैथुन करो। इससे भी गर्भ रह जाता है। ... (५) कायफलको कूट-छानकर और बराबरकी शक्कर मिलाकर रख लो । ऋतुस्नानके बाद, तीन दिन तक हथेली-भर खाओ। पथ्यदूध-भात । पीछे मैथुन करनेसे गर्भ अवश्य रहेगा। .. For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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