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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६२ चिकित्सा-चन्द्रोदय । : मिलनेसे--अपने कर्म रूपी क्लेशोंसे प्रेरित हुवा जीव गर्भका रूप धारण करता है। "भावप्रकाश' में लिखा है:.... कामान्मिथुन-संयोगे शुद्धशोणितशुक्रजः ।। ...गर्भः संजायते नार्याः स जातो बाल उच्यते ॥ जब स्त्री-पुरुष दोनों कामदेवके वेगसे मतवाले होकर आपसमें मिलकर मैथुन करते हैं, तब शुद्ध रुधिर और शुद्ध वीर्यसे स्त्रीको गर्भ रहता है। वही गर्भ पैदा होकर - योनिसे बाहर निकलकरबालक कहलाता है। . . . . . . और भी लिखा है: ऋतौ स्त्रीपुसयोयोगे. मकरध्वजवंगतः । . मेदयोन्यभिसंघर्षाच्छरीरोष्मानिलाहतः ॥ पुसः सर्वशरीरस्थं .. रेतोद्रावयतेऽथ तत् । वायुर्मेहनमार्गेण पात्यत्यंगनाभगे ॥ ततः सं त्य तद् व्यात्तमुखं गर्भाशयं व्रजेत् । तत्र शुक्रवदायातेनातवेन युतं भवेत् ॥ शुक्रातवसमाश्लेषो यदेव खलु जायते । जीवस्तदैव विशति युक्तः शुक्रात्तवान्तरः ॥ - काम-वेगसे मस्त होकर, ऋतुकाल में, जब स्त्री-पुरुष आपसमें मिलते हैं--मैथुन-कर्म करते हैं- तब लिंग और योनिके आपसमें रगड़ खानेसे, शरीरकी गर्मी और वायुके जोरसे, पुरुषों के शरीरसे वीर्य द्रवता है । उसको वायु या हवा, लिंगकी राहसे, स्त्रीकी योनिमें डाल देती है । फिर वह वीर्य खुले मुँहवाले गर्भाशयमें बहकर जाता और वहाँ स्त्रीके रजमें मिल जाता है। जब वीर्य और रजका संयोग होता है, जब बीय और रज-गर्भाशयमें मिलते हैं, तब उन मिले हुए वीर्य और रजमें "जीव" आ घुसता है । जिस तरह सूरजकी किरणों For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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