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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्त्री-रोगोंकी चिकित्सा--नष्टार्तव । ३६३ और सूर्यकान्त मणिके मिलनेसे आग पैदा होती है, उसी तरह वीर्य और आर्त्तव--रज--के मिलनेसे “जीव" पैदा होता है। ___ इतना लिखनेका मतलब यह है कि, गर्भ रहनेके लिये स्त्रीका ऋतुमती होना परमावश्यक है। जिस स्त्रीको महीने-महीने रजोधर्म नहीं होता, उसे गर्भ रह नहीं सकता । यद्यपि स्त्रियाँ प्रायः तेरहवें सालसे रजस्वला होने लगती हैं। पर अनेक कारणोंसे उनका रजोधर्म होना बन्द हो जाता या ठीक नहीं होता। जिनका रजोधर्म बन्द या नष्ट हो जाता है, वे गर्भ धारण नहीं कर सकतीं, इसीसे कहा है--"बन्ध्या नष्टार्तवा ज्ञया" जिसका रज नष्ट हो गया है, वह बाँझ है; क्योंकि “गर्भोत्पत्तिभूमिस्तुरजस्वला" यानी रजस्वला स्त्रीको ही गर्भ रहता है। यद्यपि बाँझ होनेके और भी बहुतसे कारण हैं। उन्हें हम दत्तात्रयी प्रभृति ग्रन्थोंसे आगे लिखेंगे; पर सबसे पहले हम “नष्टार्तव" या मासिक बन्द हो जानेके कारण और इलाज लिखते हैं, क्योंकि शुद्ध-साफ रजोधर्म होना ही स्त्रियोंके स्वास्थ्य और कल्याणकी जड़ है। जिन स्त्रियोंको रजोधर्म नहीं होता, उनको अनेक रोग हो जाते हैं और वे गर्भको धारण कर ही नहीं सकतीं।। __ प्रकृति, अवस्था और बलसे कम या ज़ियादा रक्तका जाना अथवा तीन दिनसे ज़ियादा खूनका झिरता रहना--रोग समझा जाता है। अगर किसी स्त्रीको महीनेसे दो चार दिन चढ़कर रजोधर्म हो, जरा-सा खून धोतीके लगकर फिर बन्द हो जाय, पेड़ में पीड़ा होकर खूनकी गाँठ-सी गिर पड़े अथवा एक या दो दिन खून गिरकर बन्द हो जाय, तो समझना चाहिये कि शरीरका खून सूख गया है-- खूनकी कमी है। अगर तीन दिनसे जियादा खून गिरे या दूसरा महीना लगनेके दो-चार दिन पहले तक गिरता रहे, तो समझना चाहिये कि खून में गरमी है। अगर खून सूख गया हो या कम हो गया हो, तो For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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