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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir “विष-वर्णन। (६) विष्ठा, (७) वीर्य, (८) आर्तव, (६) लार, (१०) मुँहकी पकड़, (११) अपानवायु, (१२) गुदा, (१३) हड्डी, (१४) पित्ता, (१५) शूक, और (१६) लाश । __नोट--शूकका अर्थ है--डंक, काँटा, या रोम। जैसे; बिच्छू, मक्खी और ततैये अादिके डंकोंमें विष रहता है और कनखजूरेके काँटोंमें। . . - चरकमें लिखा है, साँप, कीड़ा, चूहा, मकड़ी, बिच्छू, छिपकली, गिरगट, जौंक, मछली, मेंडक, भौंरा, बरं, मक्खी , किरकेंटा, कुत्ता, सिंह, स्यार, चीता, तेंदुआ, जरख और नौला वगैरकी दाढ़ोंमें विष रहता है। इनकी दाढ़ोंसे पैदा हुए विषको "जंगम विष" कहते हैं। पर भगवान् धन्वन्तरि दाढ़ोंमें ही नहीं, अनेक जीवोंके मल, मूत्र, श्वास आदिमें भी विषका होना बतलाते हैं और यह बात है भी ठीक । वे कहते हैं: (१) दिव्य सोकी दृष्टि और श्वासमें विष होता है। (२) पार्थिव या दुनियाके साँपोंकी दाढ़ोंमें विष होता है। (३) सिंह और बिलाव प्रभृतिके पञ्जों और दाँतोंमें विष होता है। (४) चिपिट आदि कीड़ोंके मल और मूत्रमें विष रहता है। (५) जहरीले चूहोंके वीर्यमें भी विष रहता है। (६) मकड़ीकी लार और चेपादिमें विष रहता है। (७) बिच्छूके पिछले डंकमें विष रहता है । (८) चित्रशिर आदिकी मुंहकी पकड़में विष होता है । (E) विषसे मरे हुए जीवोंकी हड्डियोंमें विष रहता है। (१०) कनखजूरेके काँटोंमें विष होता है। (११) भौरे, ततैये और मक्खीके डंकमें विष रहता है। (१२) विषैली जौंककी मुंहकी पकड़में विष होता है । ... (१३) सर्प या जहरीले कीड़ोंकी लाशोंमें भी विष होता है। ..नोट--(१) कितने ही लोग सभी मरे हुए जीवोंके शरीरमें विषका होना मानते हैं। For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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