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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ة مية مية مية مية مية مية مية مي مي م ة مية مية مية مية مية مية مية مية مية مية في ة ب مه ته وه به سه ره م مروة م مرة ي آ یا ما مي مية مية مية مية مية مية مية مية مية مية مية مية مية مية مية مية مية مية مية مية مية ه ي بيه جية ه ي चिकित्सा-चन्द्रोदय । (२) मकड़ियाँ बहुत तरहकी होती हैं। सुनते हैं कि कितनी ही प्रकारको मकड़ियोंके नाखून तक होते हैं। नाखूनवाली मकड़ी कितनी बड़ी होती होंगी ! इस देशमें, घरों में तो ऐसी मकड़ियाँ नहीं देखी जाती; शायद, अन्य देशों और वनोंमें ऐस भयानक मकड़ियाँ होती हों। लारमें तो सभी प्रकारको मकड़ियोंके विष होता है। कितनी ही मकड़ियोंके मल, मूत्र, नाखून, वीर्य, आर्तव और मुंहको पकड़में भी विष होता है। ज़हरीले चूहोंके दाँत और वीर्य-- दोनोंमें विव होता है। चार पैरवाले जानवरोंकी दाढ़ों और नाखूनों दोनों में विव होता है । मक्खी और कणभ आदिकी मुंहकी पकड़में भी विष होता है । विषसे मरे हुए साँप, कण्टक और वरही मछली की हड्डियों में विष होता है। चोंटी, कनखजूरा, कातरा और भौरी या भौंरेके डंक और मुंह दोनों में विष होता है। जंगम विषके सामान्य कार्य । भावप्रकाशमें लिखा है: निद्रां तन्द्रां क्लमंदाह, सम्पाकं लोमहर्षणम् । शोथं चैवातिसारं च कुरुते जंगमं विषम् ॥ जंगम विष निद्रा, तन्द्रा, ग्लानि, दाह, पाक, रोमाञ्च, सूजन और अतिसार करता है। __स्थावर विषके रहनेके स्थान । सुश्रुतमें लिखा है:-. मूलं पत्रं फलं पुष्पं त्वकक्षीरं सार एव च । निर्यासोधातवश्चैव कन्दश्च दशमः स्मृतः॥ स्थावर विष जड़, पत्ते, छाल, फल, फूल, दूध, सार, गोंद, धातु और कन्द--इन दशोंमें रहता है। नोट--किसीकी जड़में विव रहता है, किसीके पत्तोंमें, किसीके फलमें, किसीके फूल में, किसीकी छालमें, किसीके दूधमें, किसीके गोंदमें और किसीके कन्दमें विव रहता है । वृक्षोंके सिवाय, विष खानोंसे निकलनेवाली धातुओंमें भी रहता है । हरताल और सखिया अथवा फेनास्म-भस्म-ये दो विष धातु-विष माने जाते हैं । कनेर और चिरमिटी आदिको जड़में विष होता है । थूहर आदिके दूधमें विष होता है । सुश्रुतने जड़, पत्ते, फल, फूल, दूध, गोंद और सार श्रादिमें For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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