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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४६ कनखजूरके विषकी चिकित्सा। खींचनेसे भी नहीं उतरता । ज्यों-ज्यों खींचते हैं, उल्टे पजे जमाता है। गर्मागर्म लोहेसे भी नहीं छुटता । जल जाता है, टूट जाता है, पर पञ्ज निकालनेकी इच्छा नहीं करता । अगर उतरता है. तो सामने ताजा मांसका टुकड़ा देखकर मांसपर जा चिपटता है। इसलिये लोग, इस दशामें, इसके सामने ताजा मांसका टुकड़ा रख देते हैं। यह मांसको देखते ही, आदमीको छोड़कर, उससे जा चिपटता है। गुड़में कपड़ा भिगोकर उसके मुँहके सामने रखनेसे भी, वह आदमीको छोड़कर, उसके जा चिपटता है। ____ “बङ्गसेन" में लिखा है । कनखजूरके काटनेसे काटनेकी जगह पसीने आते तथा पीड़ा और जलन होती है। . . “तिब्बे अकबरी' में लिखा है, कनखजूरके चवालीस पाँव होते हैं । बाईस पाँव आगेकी ओर और २२ पीछेकी ओर होते हैं । इसीसे वह आगे-पीछे दोनों ओर चलता है। वह चारसे बारह अंगुल तक लम्बा होता है। उसके काटनेसे विशेष दर्द, भय, श्वासमें तंगी और मिठाईपर रुचि होती है। कनखजूरेकी पीड़ा नाश करनेवाले नुसखे । (१) दीपकके तेलका लेप करनेसे कनखजूरेका विष नष्ट हो जाता है। नोट--मीठा तेल चिराग़में जलाओ। फिर जितना तेल जलनेसे बचे, उसे कनखजूरेके काटे स्थानपर लगाओ। - (२) हल्दी, दारुहल्दी, गेरू और मैनसिलका लेप करनेसे कनखजूरका विष नाश हो जाता है। . (३) हल्दी और दारुहल्दीका लेप कनखजूरके विषपर अच्छा है। ( ४ ) केशर, तगर, सहजना, पद्माख, हल्दी और दारुहल्दी-- इनको पानीमें पीसकर लेप करनेसे कनखजूरेका विष नष्ट हो जाता है । परीक्षित है। For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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