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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४८ चिकित्सा-चन्द्रोदय । 'दिहातके लोग कहा करते हैं, यह अादमीको काटते ही पेशाब करता है । पत्थरपर मुंह मारकर आदमीपर झपटता है। कोई-कोई कहते हैं, जब इसे पेशाबकी हाजत होती है, तभी यह आदमीको काटता है। चिकित्सा। - यद्यपि इसका काटा हुआ आदी नहीं बचता, तथापि काले साँप वगैरः घोर ज़हरवाले साँपोंकी तरह ही इसकी चिकित्सा करनी चाहिये। कनखजूरेकी चिकित्सा। OKO Xologen स्कृतमें कनखजूरेको शतपदी कहते हैं। इसके सौ स पाँव होते हैं, इसीसे “शतपदी" कहते हैं । “सुश्रुत" में 5 इसकी आठ किस्में लिखी हैं:-- (१) परुष, (२) कृष्ण, (३) चितकबरा, (४) कपिल रंगका, (५) पीला, (६ ) लाल, (७) सफेद, और (८) अग्निवर्णका । ___ इन आठोंमेंसे सफ़ेद और अग्निवर्ण या नारङ्गी रंगके कनखजूरे बड़े जहरीले होते हैं। इनके दंशसे सूजन, पीड़ा, दाह, हृदयमें जलन और भारी मूर्छा,--ये विकार होते हैं। इन दोके सिवा,--बाक़ीके छहोंके डंक मारने या डसनेसे सूजन, दर्द और जलन होती है, पर हृदयमें दाह और मूर्छा नहीं होती। हाँ, सफेद और नारङ्गीके दंशसे बदनपर सफ़ेद-सफ़ेद फुन्सियाँ भी हो जाती हैं। ___ कदाचित् ये काटते भी हों, पर लोकमें तो इनका चिपट जाना मशहूर है । कनखजूरा जब शरीरमें चिपट जाता है, तब चिमटी वगैरहसे For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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