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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ ] मुरारि उनको क्षणभरके लिये भी नहीं त्यागते, उनको प्रत्येक संकटसे बचाते, उनके विपदके बादलोंको हवाकी तरह उड़ा देते हैं, उनकी मददके लिये, लक्ष्मीको त्यागकर क्षीर-सागरसे नंगे पैरों दौड़े आते हैं। मैंने जो बातें कही हैं, वे राई-रत्ती सच हैं। इनमें जरा भी संशय नहीं । अगर दो और दो के चार होनेमें सन्देह हो सकता है, तो मेरी इन बातोंमें भी सन्देह हो सकता है। ___एक घटनाके सम्बन्धमें, मैं "चिकित्सा-चन्द्रोदय" दूसरे भागमें लिख ही चुका हूँ। उसी घटनाको बारम्बार दुहराना, पिसेको पीसना और विद्वानोंको अप्रसन्न करना है; पर क्या करूँ जिस घटनासे कृष्णका सम्बन्ध है उसे एक बार, दो बार, हज़ार बार और लाखों-करोड़ों बार सुनानेसे भी मनको सन्तोष नहीं होता। इसके सिवा, उन्हीं कृष्णकी प्रेरणासे मेरे साथ अभूतपूर्व भलाई करनेवाले, मुझे अभयदान देनेवाले सज्जनोंको बारम्बार धन्यवाद दिये विना भी मेरी आत्माको शान्ति नहीं मिलती, इसीसे अपनी लिखी हर पुस्तकमें मैं इस गानको गाया करता हूँ। सुनिये पाठक ! भारतके भूतपूर्व वायसराय और गवर्नर जनरल लार्ड चेम्सफर्ड महोदय जैसे प्रसिद्ध सङ्गदिल बड़े लाटने जो मेरे जैसे एक तुच्छ जीवपर अभूतपूर्व कृपा की, वह सब क्या था ? वह उन्हीं कृष्णकी कृपाका फल था। उन्हीं जगदात्माकी इच्छासे वायसराय मेरे लिये मोमसे भी नर्म हुए। उन्हींकी मर्जीसे वे मुझपर सदय हुए | उन्हींकी इच्छासे, उन्होंने मुझे घोर संकटसे बड़ी ही आसानीसे बचा दिया । इसके लिये मैं जगदीशका तो कृतज्ञ हूँ ही, पर साथ ही वायसराय महोदयकी दयालुताको भी भूल नहीं सकता। परमात्मा करें, हमारे भूतपूर्व वायसराय लार्ड चेम्सफर्ड महोदय और बंगालके लाटके भू० पू० प्रायवेट सेक्रेटरी मिस्टर गोरले महोदय एम० ए०,. सी० आई० ई०, आई० सी० एस० चिरजीवन लाभ करते हुए जगदीशकी उत्तम-से-उत्तम न्यामतीको भोगें।... For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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