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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ 9 ] इसलिये मुझे मानना पड़ता है, कि यह सब उन्हीं अनाथनाथ, असहायोंके सहाय, निरावलम्बोंके अवलम्ब, दीनबन्धु, दयासिन्धु, भक्तवत्सल, जगदीश-कृष्णकी ही दयाका नतीजा है, जो नेत्रहीनको सनेत्र, गूंगेको वाचाल, मूर्खको विद्वान्, अल्पज्ञको बहुज्ञ, असमर्थको समर्थ, कायरको शूर, निर्धनको धनी, रङ्कको राव और फकीरको अमीर बनानेकी सामर्थ्य रखते हैं। हमारे जिन भारतीय भाइयों और अँगरेज़ी-शिक्षा-प्राप्त बाबुओंको देवकीनन्दन, कंसनिकन्दन, गोपीवल्लभ, ब्रजविहारी, मुरारि, गिरवरधारी, परम मनोहर, आनन्दकन्द श्रीकृष्णचन्द्रपर विश्वास न हो, जो उन्हें महज़ एक जबर्दस्त आदमी अथवा एक शक्तिशाली पुरुषमात्र समझते हों, उनके सर्वशक्तिमान जगदीश होनेमें सन्देह करते हों, वे अबसे उनपर विश्वास ले आवें, उन्हें जगदात्मा परमात्मा समझे, उनकी सच्च और साफ़ दिलसे भक्ति करें और हाथों-हाथ पुरस्कार लूटें। कम-से-कम मेरे ऊपर घटनेवाली घटनाओंसे तो शिक्षा लाभ करें। मैं नकटोंकी तरह अपना दल बढ़ानेकी ग़रज़से नहीं, वरन् अपने भाइयोंके सुख-शान्तिसे जीवनका बेड़ा पार करनेकी सदिच्छामें अपबीती सच्ची बातें यदाकदा कहा करता हूँ। जो शुद्ध-अशुद्ध मंत्र मुझे आता है, जिससे मुझे स्वयं लाभ होता है, उसे अपने भाइयोंको बता देना मैं बड़ा पुण्य-कार्य समझता हूँ। पाठको ! मैं आपसे अपनी सच्ची और इस जीवनमें अनुभव की हुई बातें कहता हूँ। जो सरल, शुद्ध और संशय-रहित चित्तसे जगदात्मा कृष्णको जपते हैं, उनकी भक्ति करते हैं, उनको हर समय अपने पास समझकर निर्भय रहते हैं, अभिमानसे कोसों दूर भागते हैं, किसीका भी अनिष्ट नहीं चाहते, अपने सभी कामोंको उनका किया हुआ मानते हैं, अपने-तई कुछ भी नहीं समझते, घोर संकट-कालमें उनको ही पुकारते और उनसे साहाय्य-प्रार्थना करते हैं, भक्तभयहारी कृष्ण For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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