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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ ट] यह घटना तो अब पुरानी हो चली, इसे हुए दो साल बीत गये। 'पाठक ! अब एक नई घटनाकी बात भी सुनें और उसे पागलोंका प्रलाप या मूर्ख बकवादीकी थोथी बकवाद न समझकर, उसपर गौर भी करें अभी गत नवम्बरमें, जब मैं इस पंचम भागका प्रायः आधा काम कर चुका था, मेरी घरवाली सख्त बीमार हो गयी। इधर बच्चा हुआ, उधर महीनोंसे आनेवाले पुराने ज्वरने जोर किया । आँव और खून के दस्तोंने नम्बर लगा दिया, मरीजाकी जिन्दगी खतरेमें पड़ गई। मित्रोंने डाक्टरी इलाजकी राय दी। कलकत्तेके नामी-नामी तजुर्बेकार डाक्टर बुलाये गये। इलाज होने लगा। घण्टे-घण्टे और दो-दो घण्टेमें नुसने बदले जाने लगे। पैसा पानीकी तरह बखेरा जाने लगा; पर नतीजा कुछ नहीं-सब व्यर्थ । “ज्यों-ज्यों दवाकी मर्ज बढ़ता गया" वाली कहावत चरितार्थ होने लगी। न किसीसे बुखार कम होता था और न दस्त ही बन्द होते थे। अच्छे-अच्छे एम० डी० डिग्रीधारी वलायत और अमेरिकासे पास करके आये हुए पुराने डाक्टर दवाओं-पर-दवाएँ बदल-बदलकर किं-कर्त्तव्य विमूढ़ हो गये। उनका दिमाग़ चक्कर खाने लगा। किसीने माथा खुजलाते हुए कहा-"अजी! पुराना बुखार है, ज्वर हड्डियोंमें प्रविष्ट हो गया है, यकृतमें सूजन आ गई है । हमने अच्छी-से-अच्छी दवाएँ तजवीज की, एक्सपर्टोसे सलाह भी ली, पर कोई दवा लगती ही नहीं, समझमें नहीं आता क्या करें।" किसीने कहा-"अजी ! अब समझे, यह तो एनीमिया है, रोगीमें खूनका नाम भी नहीं, नेत्र सफ़ेद हो गये हैं, हालत नाजुक है, ज़िन्दगी खतरेमें है । खैर, हम उद्योग करते हैं, पर सफलताकी आशा नहीं-अगर जगदीशको रोगिणीको जिलाना मंजूर है अथवा मरीज़ाकी ज़िन्दगीके दिन बाकी हैं, तो शायद दवा लग जाय।” बस, कहाँ तक लिखें, बड़े-बड़े डाक्टर आकर मरीजाकी नब्ज़ देखते, स्टेथस For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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