SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 106
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विष-उपविषोंकी चिकित्सा--"धतूरा"। ७५ ले जायँगे । आप दुश्मनसे हमारा पीछा छुड़ाइयेगा ।" यह कहकर पीछेकी ओर मत देखो और चले आओ। रविवारके सबेरे ही जाकर, उसी धतूरेकी एक छोटी-सी डाली तोड़ लाओ और उसे अपनी बाँहपर बाँध लो । परमात्माकी कृपासे फिर चौथैया न आवेगा। धतूरेकी विष-शान्ति के उपाय । आरम्भिक उपाय (क) धतूरा खाते ही, बिना देर किये, वमन कराकर आमारायसे विषको निकाल दो। (ख) अगर विष पक्वाशयमें पहुँच गया हो, तो जुलाब दो । (ग) शिरपर शीतल पानीकी धारा छोड़ो। (घ) बिनोलोंकी गिरी खिलाकर दूध पिलाओ। (ङ) अगर दिमागी फितूर हो--बेहोशी आदि लक्षण हों, तो नस्य भी दो। (१) तुषोदकमें चाँवलोंकी जड़ पीसकर और मिश्री मिलाकर पिलानेसे धतूरेका विष नाश हो जाता है । परीक्षित है। (२) शं वाहूलीकी जड़ पानीमें पीसकर पिलानेसे धतूरेका ज़हर शान्त हो जाता है । परीक्षित है। (३) बिनौले और कपासके फूलोंका काढ़ा पीनेसे धतूरेका जहर उतर जाता है । परीक्षित है। (४) बैंगनके टुकड़े करके पानीमें खूब मल लो और पीओ । इससे धतूरेका विष नष्ट हो जायगा। ___नोट-अगर बैंगन न मिले तो बैंगनके पत्तों और जड़से भी काम चल सकता है। वे भी इसी तरह पीस-छानकर पिये जाते हैं। (५) चालीस माशे बिनौलोंकी गिरी पानीमें पीसकर पीनेसे धतूरेका जहर उतर जाता है । - नोट--किसी-किसीने छै माशे बिनौलोंकी गिरी खिलाना लिखा है। For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy