SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 9
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir भगवान्केच्यवनकल्याणकसमय उनकी माता१४महास्वप्न आकाशसे उत्तरतेहुपदेखतीहै, उसीसमय तीनजगतमें उद्धयोत होता है य सर्व संसारीप्राणीमात्रको सुखकीप्राप्तीहोती है, और इन्द्रमहाराजका आसन चलायमान होनेसे अवधिज्ञानसे भगवान्को देखकर विधिपूर्वक पूर्णभक्तिसहित नमुत्थुणरूप नमस्कारकरके तत्काल माताके पासआकर१४ महास्वप्न देखनसे स्वप्नों के अनुसार तीनजगतकेपूज्यनी क तीर्थकर पुत्र होनेका कहकर इन्द्रमहाराज अपने स्थानपरजाते हैं. और प्रभातसमय फजरमें राजा स्वप्न पाठकोंसे १४ महास्वप्नौकाफल पूछताहे,तव तीर्थकर पुत्र होनेका सुनकर हर्ष सहित महोत्सव क. रता है, और इन्द्र महाराज देवताओं द्वारा उस रोजसे भगवान के माता-पिताके घरमे धन धान्यादिकसे राज्य ऋद्धिकीवृद्धि करवाते हैं इत्यादि तीर्थकरभगवान्के च्यघनकल्याणकके कार्यहोते हैं, यही सर्व कार्य आषाढशदी के रोज भगवान देवानंदामाताके गर्भ में आये तब नहीं हुप,किंतु आसोज वदी १३के रोज त्रिशलामाताके गर्भमें आये, तब उससमय हुपहैं, क्योंकि देखो-आषाढ सुदी ६ को तो प्राचीन कर्मके उदयसे भगवान् ब्राह्मणीदेवानंदामाताके गर्भभे आये. और दिनतकवहां ठहरनापडा,उनको कल्पसूत्रादिक शास्त्रों में अच्छेरा कहाहै, इसलिये ८२ दिन तकतो इन्द्रादिक किसीकोभी तीर्थकरभगवान्के उत्पन्न होनेकी मालूम न पड़ी,मगर संपूर्ण८२ दिन गयेबाद इन्द्रमहाराजको अवधिज्ञानसे मालूम पडी उसीसमय पूर्णहर्षसहित नमुत्थुणकिया और हरिणेगमेषिदेवको आज्ञाकरके क्षत्रियाणीत्रिशला माताके गर्भमे पधराये, तब त्रिशलामाताने (देवानंदाके १४महास्वप्न हरणकरनेकारस्वप्न नहीं देखा किंतु)तीर्थकर भगवान्के च्यवन क. ल्याणककी सूचनाकरने वाले १४ महास्वप्न आकाशसे उत्तरत हुए और अपने मुख में प्रवेश करते हुए देखे हैं. इसलिये खास कल्प: सूत्रके मूल पाठमेभी "एए चउद्दस सुमिणा, सव्वा पासेई तिस्थयर माया। जं रयणि धक्कमई, कुच्छिसि महायसो अरिहा"अर्थात्-जिस समय तीर्थकर भगवान् माताके गर्भमें आकर उत्पन्न होते हैं,उस समय यह १४ महास्वप्न सर्व तीर्थंकरमहाराजोंकी मातायें देखती, वैसेही-त्रिशलामातानेभी १४ महास्वप्न देखे हैं, इसलिये त्रिशलामा ताके गर्भमे आने कोही शास्त्रकार महाराजोने व्यवन कल्याणक मा. न्य कियाहै, इसीकारणसे समवायांगसूत्रवृत्ति देवानंदामाताके गभंसे त्रिशला माताके गर्भ में आनेको अलग भव गिनकर तीर्थकर For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy