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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [८] पनेमें प्रकट होने कालिखाहै. और 'महापुरुष चरित्र' में तथा 'त्रिषष्ठिशलाका पुरुष चरित्र' आदिक प्राचीन शास्त्रों में भी ८२ दिन गये बाद इन्द्रका आसन चलायमान होनेसे अवधिज्ञानसे भगवानको देखकर नमुत्थुगं किया और त्रिशलामाताके गर्भपधराये, जब त्रिशलामाताने १४महास्वप्न देखे,तब खास इन्द्रने त्रिशलामाताके पासमें आकर तीर्थकर पुत्र होनेका कहा है, और फजरमें स्वप्न पाठकॉसभी तीर्थकर पुत्र होनेका सुनकर सबको तीर्थकर भगवान्के उत्पन्न होने की मालूम होगई. इसलिये कल्पसूत्रमें जो नमुत्थुणंका पाठ है, सोमी आसोज वदी १३ के दिन संबंधी है, किंतु आषाढ शुदि६ के दि. न संबंधी नहीं है, क्योंकि देखो- 'नमुत्थुणं करके त्रिशलामाताके ग. भेमें पधराये' ऐसा कल्पसूत्रादिमें खुलासालिखाहै, मगर आषाढ शु. दीदको आसनप्रकंपनसे नमुत्थुणं किया और फिर उसके बादमें ८२ दिन गये पीछे त्रिशलामाताके गर्भ में पधराये. या ८२दिन तो इन्द्रको विचारकरते चलेगये. वा पूरे ८२ दिन गयेबाद आसोज वदी १३ को फिर आसन प्रकंपनसे त्रिशलामाताके गर्भपधराये. अथवा ८२दिन ठहरकर पीछे त्रिशलामाताके गर्भ में पधराये. ऐसे पाठ किसीभी शास्त्रमें नहीं है. मगर ८२दिन तक तो मालमभी नहींपड़ी, परंतु ८२दिन जाने बादआसन प्रकंपनहोनेसे मालूम पडी, तब नमुत्थुणं किया और उसी रोज पधराये, ऐसे पाठ तो "महापुरुष चरित्र” में तथा “ त्रि. षष्ठिशलाका पुरुष चरित्र" आदि अनेक प्राचीन शास्त्रोंमें खुलासा पूर्वक प्रत्यक्ष मिलतेहैं, इसलिये आसोज वदी १३ कोही ' नमुत्थुणं' वगैरह च्यवन कल्याणकके तमाम कार्य होनेसे आगम पंचांगीकी श्रद्धावालोको व श्रीवीरप्रभुकी भक्तिवालोको यह दूसरा च्यवमरूप कल्याणक मान्य करनाही उचित है, बस ! आसोज वदी १३ कोही नमुत्थुणं करने वगैरह च्यवन कल्याणकके तमाम कार्य होनेका मान्यकरो या आषाढ शुदी ६ को नमुत्थुणं करने वगैरह च्यवन कल्याणकके तमाम कार्य होनेका खुलासा पूर्वक शास्त्रपाठ घतलायो,व्यर्थ विवाद करने में कोई सार नहीं है. ११- श्रीआदीश्वर भगवान्के राज्याभिषेकम तो कोईभी क. ल्याणकके लक्षण नहीं है, मगर गर्भापहारसे गर्भ संक्रमणरूप दूस. रे च्यवनमें तो च्यवन कल्याणकके सर्व लक्षण प्रत्यक्ष मौजूद है, इ. सलिये उसका भावार्थ समझे बिनाही राज्याभिषेककी तरह गर्भापहारकोभी कल्याणकपनेका निषेध करना यहभी बे समझ है । For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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