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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वष्कयणी ९४२ वष्कयणी (स्त्री०) [वष्कय+नी+क्विप्+ङीष] चिर प्रसूता वसन्तजा (स्त्री०) माधवी लता, वसन्तोत्सव। गाय, बहुत दिनों से ब्याही हुई गाय। वसन्ततिलकः (पुं०) वसन्त की शोभा, वसन्त ऋतु का वस् (अक०) रहना, ठहरना, निवास करना। अलंकरण। स्थित होना, खड़े होना। वसन्तदूतः (पुं०) कोकिल, कोयल, कुहू कुहू शब्द। विद्यमान होना। चैत्रमास। ०अवस्थित रहना। (सुद० ९८) 'किमुशर्करिले वसति वसन्तदूती (स्त्री०) शृंगवल्ली का पुष्प। हतत्वाद्। (सुद०९८) वसन्तद्गु (पुं०) आम्र तरु। स्थिर होना, सीधा होना। वसन्तद्रुमः (पुं०) आम्र तरु। वसतिः (स्त्री०) [वस्+अति वा ङीष] ०रहना, स्थित होना, वसन्तपंचमी (स्त्री०) ऋतु की पञ्चमी। ठहरना। वसन्तबन्धुः (पुं०) कामदेव, मदन। नगर, पुर। (मुनि० १९) वसन्ततु (स्त्री०) वसन्त का समय। घर, आवास, निवास, स्थान। वसन्तऋतु (स्त्री०) वसन्तमास। (वीरो० ६/३६) वन्योमधो ०आधार, आश्रय, आशय, पात्र। पाणिधृतिस्तदुक्तं पुस्कोकिलैर्विप्रवरैस्तु सूक्तम्। (वीरो० शिविर, पड़ाव, छावनी, डेरा। ६/१४) वसनं (नपुं०) [वस्+ल्युट्] ०रहना, ठहरना, रुकना, निवास। वसन्तश्री (स्त्री०) वसंत शोभा। वेणी वसन्तश्रिय एव रम्याऽसौ घर, आवास, स्थल। श्रृंखला कामगजेन्द्रगम्या' (वीरो० ६/२६) प्रसाधन करना, धारण करना, पहनना। वसन्तसम्राटूः (पुं०) वसन्त राज, वसन्त ऋतु, ऋतुराज ०वस्त्र, कपड़ा, परिधान। (जयो० १२/९९) 'वसनेभ्यश्च वसन्त। (वीरो० ४/५) तिलाञ्जलिमुक्त्वा ' आह्वयति तु दैगम्वर्यन्तत्। (सुद० ८१) वसन्तसम्पदा (स्त्री०) वसन्तश्री। (समु० २/१४) वेष। (सुद० ७५) वसन्तसेना (स्त्री०) वसन्त सेना वेश्या, जो आर्यिका बनकर करधनी, कंदौरा, कमरबन्द। तगड़ी। तप पूर्वक स्वर्ग को प्राप्त हुई। वसनगत (वि०) वस्त्र सहित। एक पण्याङ्गना (दयो० ६९) सर्वार्थासिद्धिं खलु सोम वसनजात (वि०) परिधान सुसज्जित। आप वसन्तसेना च विषा निरापत्। (दयो० १२५) वसनताटंकः (पुं०) वस्त्राभूषण। वसा (स्त्री०) [वस्+अच्+टाप्] मेद, चर्बी, मज्जा। वसनत्यक्त (वि०) वस्त्र त्याग करने वाला, निर्गन्थ, दिगम्बर। वसाढ्यः (पुं०) सूंसा वसनधर (वि०) वस्त्रधारक। वसापायिन् (पुं०) कुत्ता, श्वान। वसनमुक्त (वि०) निर्ग्रन्थ। वसि (नपुं०) [वस्+इन्]ि वस्त्र, परिधान। वसनाभरणं (नपुं०) वस्त्राभरण। (जयो० १३/७६) निवास, आवास। वस्त्राभूषण (सद०७५) वसनाभरणैरादरणीयाः सन्तु मूर्तयः | वसित (भू०क००) [वस्+णिच्+क्त] स्थित, रहता हुआ, किन्तु न हीयान्। (सुद० ७५) धारण किए हुए। वसन्तः (पुं०) वसन्त ऋतु, ऋतुराज। (सुद० ४/१) (जयो० निवास युक्त। ४/४) (जयो० १/७३) 'स वसन्तः स्वीक्रियतां सन्तः वसिष्ठः (पुं०) एक मुनि, तापस। सवसन्तः' (सुद० ८१) स वसन्त आगतो हे सन्तः। स वसुः (पुं०) कौशला पुरी निवासी गणधर अचल के पिता श्री, वसन्तः। ___ नवें गणधर के पिता। वसुः पिताऽम्बाऽस्य वभौ च नन्दा चैत्रमास, वसन्तोत्सव। सा कौशलाऽऽख्या नगरीत्यमन्दा। (वीरो० १४/१०) वसन्त (वस्-शत) रहते हुए। (सुद० १/२७) कुबेर, अग्नि, शिव, सरोवर, तालाब। वसु राजा। वसन्तकालः (पुं०) वसन्त का समय। वसु (नपुं०) [वस्+उन्] धन, सम्पत्ति, वैभव। वसन्तघोषिन् (पुं०) कोयल। ०मणि, रत्न, स्वर्ण। (समु० ३/३०) For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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