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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वल्लरी ९४१ वष्कयः वशवर्तिन् (पुं०) सेवक, भृत्य, प्रिया। वशवर्तिन् (पुं०) सेवक, भृत्य, अनुचर। (सद० १२१, जयो० १६/६३, सुद० ३/४२) वशा (स्त्री०) [वश्+अच्+टाप्] अबला, वनिता, नारी, कन्या, नारी। 'वशास्त्रियां सुतायाञ्चेति' विश्वलोचनः' (जयो० १३/२०) पत्नी, भार्या, प्रिया। •पुत्री, ननद। गाय। वल्लरी (स्त्री०) [वल्ल्+अरि+ङीष्] बेल, लता। मञ्जरी। (दयो० ११२) वल्लवः (पुं०) ग्वाला, गोपाल। वल्लिः (स्त्री०) लता, बेल, गुल्म। ____०भू, भूमि, धरा। वल्ली (स्त्री०) लता, बेल। (जयो० १४/१७) गुल्म। __ (जयो०३० ३/३९) वल्लीलं (नपुं०) मिर्च। वल्लीवृक्षः (पुं०) सालतरु। वल्लुरं (नपुं०) [वल्ल+उरन्] निकुंज, पर्णशाला। मंजरी। ०अरण्य। रेगिस्तान। सूखा मांस। बल्लू (अक०) प्रमुख होना, सर्वोत्तम होना। वल्ह् (सक०) बोलना, कहना। ०चोट पहुंचाना, ढंकना। ०मार डालना, नष्ट करना। वश (सक०) चाहना, इच्छा करना, अभिलाषा करना, लालसा करना। ०अनुग्रह करना। ०चमकना। वश (वि०) [वश् कर्तरि अच् भावे अप् वा] ०आधीन, . प्रभावगत, नियंत्रणगत। (सुद० ७२) पुण्याशयवशाज्जातं शुद्धलेश्यावलम्बनात्। (सम्य० ११५) अभिलाषा, वाञ्छा, चाह, इच्छा। (जयो० ६/९९) शक्ति, प्रभाव, स्वामित्व, अधिकार। वशंकर (वि०) आधीन युक्त। (जयो० १३/९९) वशकृत (वि०) वशीगत। (जयो० ४/४८) वसंगत (वि०) वशवर्तिता को प्राप्त, अधिकार को प्राप्त हुआ। अनेकविघ्नप्रकरेऽत्र येन, सन्मानसोत्साह वशंगतेन। (सम्य० ९५) वशङ्ग (वि०) लोलुपी। (सुद० १२७) वशंवद (वि०) [वश+वद+खच] ०आज्ञाकारी, समझदार। (जयो० २/६५) अनुवर्ती, विनीत, आधीन, प्रभावित। (समु० ३/७) वशका (वि०) आज्ञाकारिणी भार्या, प्रिया। वशग (स्त्री०) वशवर्ती, आज्ञाकारी। (सुद० ११२) ०हथिनि। वशिः (स्त्री०) आधीनता, सम्मोहन। वशिक (वि०) [वश्+ठन्] शून्य, रहित। वशिताभृत (वि०) जितेन्द्रिय। 'वशी सुगतशक्रयोरि' ति कोषसद् भावात्' (जयो०१० ३/२९) वशिन् (वि०) [वशः अस्त्यस्य इनि] ०शक्तिशाली, बलशाली। विज्ञ, पाठक। (जयो० ७/१०२) आधीन, वशीभूत। ०विनीत, नम्र, जितेन्द्रिय। (जयो० १२/१) वशिनिन्दित (वि०) संयमधारिघृणित। (जयो० २६/२३) वशिनी (स्त्री०) [वशिन्+ङीप्] शमीवृक्षा वशिरः (पुं०) [वश्+किरच] एक प्रकार का मिर्च। वशिरं (नपुं०) समुद्री नमक। वशीगत (वि०) आधीनता को प्राप्त हुआ। (जयो० ४/४८) वशेन्द्रियत्व (वि०) जितेन्द्रियत्व। (वीरो० १६/१५) वश्य (वि०) वशीभूत, आधीनता युक्त। (सुद० १/३२) वश्यः (पुं०) सेवक, भृत्य, अनुचर। आधीन-कुतोऽस्य वश्यः न हि तत्त्वबुद्धि। (वीरो० ५/३१) साधक का दोष, मंत्र-तन्त्र के उपदेश से दाता को आधीन करना। वश्यका (स्त्री०) [वश्य कन्+टाप्] आज्ञाकारिणी पत्नी, विनम्रा, विनीता। वष् (सक०) मारना, नष्ट करना, ०क्षति पहुंचाना, वध करना। वषद (अव्य०) [वह उषटि] आहूति के समय उच्चरित होने वाला शब्द। वष्क् (सक०) जाना, पहुंचना। वष्कयः (पुं०) [वष्क्+अयन्] छोटा बछड़ा, एक वर्ष का बछड़ा। For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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