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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वसुकः ९४३ वस्तु जल, वारि। ०वस्तु द्रव्य। . व्हाटक। (जयो० ३/७८) वसुकः (पुं०) आक पादप। वसुकं (नपुं०) रत्न, मणि। भो भो! भट्टिनि भद्रमित्र वसुकं, भारं तु मे देहि तत्। (समु० ३/४४) समुद्री नमक। शिलीभूत नमक, लोडी नमक। वसुकसारा (स्त्री०) प्रकाश, किरण। ___०अमरावती, अलकापुरी। वसुकीटः (पुं०) भिक्षुक। वसुकृमि देखो ऊपर। वसुदा (स्त्री०) भूमि, भू, धरा। वसुदेवः (पुं०) कृष्ण के पिता। ०वसुदेव राजा। (वीरो० १७/१८) वसुदेव्या (स्त्री०) घनिष्ठा नक्षत्र। वसुधा (स्त्री०) भू, धरा, पृथ्वी। (जयो० ६/४) भूतल, भू भाग। (जयो० ११/५२) वसुधातिवर्तिः (स्त्री०) स्वर्गीय सुख। ०परमानन्द। 'यतो वसुधामतीत्य वर्तते सुधातिवर्ति' (जयो० ११/५२) वसुधामं (नपुं०) रत्न स्थान, मणिमुक्ताओं का स्थान। वसूनां रत्नानां धाम स्थानभूता' (जयो० १२/५) वसुधालयः (पुं०) धरानिवासी 'न सुधा वसुधालयैस्तु पीतोत्तममस्यास्तु हवि: कवीन्द्र गीतौ। (जयो० १२/७०) वसुधावलयः (पुं०) भूतल। (वीरो० २२/८) वसुधावसु (नपुं०) पृथिवी रत्न, भूरत्न। वसुधायाः पृथिव्यां वसुरूपां रत्नतुल्याम्' (जयो०वृ० ५/७) वसुधासुधानिधानं (नपुं०) पृथ्वी के सुधाकर। 'वसुधायाः पृथिव्याः सुधानिधाने चन्द्रमसीव' (जयो०६/५०) वसुधैवकुटुम्बिन् (पुं०) पृथ्वीमात्रस्य बन्धु, भू भाग रूप वसुभूति (पुं०) मगध देशान्तर्गत गोबर ग्राम निवासी वसुभूति ___ब्राह्मण (वीरो० १४/४) वसुमत् (वि०) [वसु+मतुप्] धनवान, वैभवसम्पन्न। वसुमती (स्त्री०) धरणी, धरती, धरा, पृथ्वी। (जयो० २१/१४) वसुमतीवलयः (पुं०) महीमण्डल, भूभाग। (जयो० ५/२७) वसुराजा (स्त्री०) न्यायधीश वसुराजा। (वीरो० १८/५०) (पुं०) आग, अग्नि। वसुर्वाग्विवश (वि०) वसुराजा के वचन से विवश हुआ। __ 'न्यायाधिपः प्राह च पार्वतीयं वचो वर्सर्वाग्विवशो महीयम्। (वीरो० १८/१५) वसुलः (पुं०) [वसु+ला+क] अमर, देव, देवता। वसुसारः (पुं०) रत्ननिकट, रत्नसमूह। (जयो० १२/६६) पृथ्वी खनिज सम्पदा। वसूपयुक्तभूति (पुं०) वसुभूति ब्राह्मण, मगध देशान्तर्गत गोबर निवासी ब्राह्मण। (वीरो० १४/४) वसूरा (स्त्री०) [वस्+अरच्+टाप्] गणिका, वेश्या, रण्डी। वस्क् (सक०) जाना, पहुंचना, प्राप्त होना। वस्कराटिका (स्त्री०) बिच्छू, वृश्चिक। वस्त् (सक०) क्षति पहुंचना, नाश करना। मांगना, याचना करना। वस्त् (नपुं०) आवास, निवास। वस्तः (पुं०) बकरा, अज। वस्तकं (नपुं०) [वस्त+कै+क] कृत्रिम लवण। वस्तिः (स्त्री०) [वस्+नि] आवास, निवास, रहने का स्थान, जहां लोगों का परिकर हो। उदर। ०पेटू। मूत्राशय। ०एनीमा, पिचकारी। वस्तिकर्मन् (नपुं०) एनीमा कार्य। वस्तिमलं (नपुं०) मूत्र। वस्तिशिरस् (नपुं०) एनीमा की नली। वस्तिशोधनं (नपुं०) मूत्र बढ़ाने वाली दवा। वस्तु (नपुं०) [वस्+तुन्] पदार्थ, द्रव्य, वस्तु, सामग्री, मामला। (सुद० ४/५) 'अनित्यतैवास्ति न वस्तुभूताऽसौ नित्यताऽप्यस्ति यतः सुरतम् (वीरो० १२/४२) समुत्पत्तिस्थान। (जयो० ११/२१) ०वास्तविकता, विद्यमान चीज। कुटुम्बी। वसुन्धरा (स्त्री०) [वसूनि धारयति वसु+धृ+णिच्+खच्+टाप्] ० नाना रत्नधारिणी, भूमि, पृथ्वी, ०धरिणी, ०धरती। (वीरो० ४/११) वसुप्रणाशः (पुं०) रत्न हड़पना, रत्न ले लेना। *भूमि को छीनना। * ममर्तादीनस्य वसुप्रणाशात, किं शाम्यता तेऽपधियो दुराशा। (समु० ३/३६) वसुभानु (पुं०) नररत्न। (जयो० ४/३८) नरेंद्र, नृप। ०सज्जना For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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