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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वराहशृंगः ९३३ वर्गशस् वराहशृंगः (०) शिव, शंकर। वरिमन् (पुं०) श्रेष्ठता, सर्वोपरिता, प्रमुखता। वरिवसित (वि०) पूजा गया, अर्चित, सम्मनित, सत्कृत। वरिवस्या (स्त्री०) [वरिवस: पूजायाः करणं, वरि वस्+क्यप्+अ+टाप्] पूजा, अर्चना, प्रार्थना, सम्मान, सत्कार, | भक्ति । वरिष्ठ (वि.) [वर। उरुर्वा उरु+इष्ठन] सर्वोत्तमता. अत्यन्त श्रेष्ठ, अत्यन्त पूज्य। (वीरो० ) ०पूज्य, प्रमुख। अत्यन्त विशाल, अत्यन्त विस्तृत। वरिष्ठः (पुं०) तीतर पक्षी। संतरे का वृक्षा वरिष्ठं (नपुं०) तांबा। मिर्च। वरी (स्त्री०) [वृ+अच्+ङीष] सूर्य की पत्नी छाया, शतावरी का पौधा। वरीतुम् (वरी+कुमुन्) वरण करने के लिए। (जयो० ५/२) वरीयस् (वि०) [वर: उरुर्षा उरु+ईयसुन्] ०अधिक समीचीन, उत्तमोत्तम। अत्युच्चै (जयो० १३/३) ०अत्युत्तम, बहुत अच्छा, अच्छे रूप में प्रवर्तित। (वीरो० ९/३५) वरीवर्तिन (वि०) उत्तमोत्तम। अच्छे रूप में प्रवर्तित। वरीवर्दः (पुं०) बैल, सांड। वरीषुः (पुं०) [वरः श्रेष्ठः इषु यस्य] कामदेव। वरुटः (पुं०) म्लेच्छ जाति। वरुडः (पुं०) एक जाति विशेष। वरुणः (पुं०) आदित्य, सूर्य। ०वृक्ष-सुखाशो राजतिनिशे वरुणे सुमनोरथ इति विश्वलोचनः। (जयो० २१/३२) अन्तरिक्ष, समुद्र। वरुणपाशः (पुं०) घड़ियाल। वरूथं (नपुं०) बख्तर, कवच। वरोचितः (वि०) वरयोगय, वरण योगय, विवाह करने योग्य। (दयो०७०) वरेण्य (वि.) [+एन्य] ०वान्छनीय, सर्वोत्तम, श्रेष्ठ, प्रमुख, पूज्यमत। वरोटः (पुं०) [वराणिश्रेष्ठानि उटानि दलानि यस्य] मकवे का | पौधा। वरोटं (नपुं०) बर्र, भिड़। वर्करः (पुं०) [वृक्+अरन्] मेमना। ०बकरा, पालतू जानवर। आमोद, क्रीड़ा विहार, मनोरंजन। वर्कराटः (पुं०) [वर्करं परिहासं अटति गच्छति वर्कर+अट्+अण] कटाक्ष, तिरछी नजर। वर्कुटः (पुं०) कील, अर्गला, चटखनी। वर्गः (पुं०) [वृञ्+घञ्]० श्रेणी, विभाग। एक राशि, अविभागप्रतिच्छेद। ०समूह समुदाय, समन्वय, एक रूपता। (जयो०५/२०) अनुभाग, अध्याय, परिच्छेद, ग्रन्थ का एक अनुच्छेद/हिस्सा। कर्म प्रदेश के अनुभाग। प्रवर्ग, टोली, पक्षा भाग। (जयो० १/३) कवर्ग आदि का समूह। त्रिवर्ग भावात्प्रतिपत्तिसार: स्वयं चतुर्वर्णविधिं चकार। जनोऽपवर्ग स्थितये भवेऽद: स नाऽभिज्ञत्वममुष्य वेद।। (वीरो० ३/९) 'क-च--ट वर्गाणां भावात्सद्भावाद् ज्ञानान्तरं यः स्वयमेव चतुर्थी वर्णानां त-थ-द-धां विधिं चकार। (जयो०७० ३/९) वर्गघनः (पं०) वर्ग का घनफला वर्गजात (वि०) समन्वय को प्राप्त हुआ। वर्गणा (स्त्री०) समूह, समुदाय, संख्या योग। (सम्य० ३४) सब जीवों के अनन्तवें भाग प्रमाण वर्गों के समूह-वर्गसमूहलक्षणां' वर्गाणां समहो वर्गणा भण्यते। (जैन०ल० ९८३) ०असंख्यात लोक प्रमाण योगाविभाग प्रतिच्छेदों की एक वर्गणा होती है। वर्गणाप्रदेशः (पुं०) वर्गणा नाम, वर्गणा प्रदेश। वर्गनिसर्गः (पुं०) वर्ग की रचना। (जयो० १/३) वर्गपदं (नपुं०) वर्गमूल, संख्या निकालने की पद्धति। वर्गफलः (पुं०) घनफल। वर्गबन्धः (पुं०) अनुच्छेद में विभक्त। वर्गभावः (पुं०) अनुभाग, अध्याय। वर्गमण्डित (वि०) त्रिवर्ग से सुशोभित। कु-चु-टुनामेव समूहसेवितः, (जयो०७० ३/२०) अपवर्ग विचारक। (जयो० ३/२०) . वर्गमूलं (नपुं०) वर्गमूल, वर्गपद। वर्गशस् (अव्य०) समूहवार। For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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