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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वरदान ९३२ वराहमिहिरः वरदान (वि०) वर प्रदान करने वाला। आंवला। वरदायक (वि०) वर प्रदाता। सुगंधित द्रव्य। वरदे/वरदेवः (पुं०) उत्तम देव। (जयो० ८/८७) सुदेव। ०हल्दी। वरद्गुमः (पुं०) अगर का वृक्षा उत्तम जाति का वृक्ष। वराक (वि०) बेचारा, दयनीय। वृद्धो वराको जडधी रयेण। वरनिर्वाचनं (नपुं०) वरचयन। (जयो० ३/६६) (वीरो० ४/२३) असहाय, आर्त, पीड़ाजन्य स्थिति वाला, वरपक्षः (पुं०) दुल्हे का पक्ष। अभागा, दुःखी, त्रस्त, व्याकुल। (वीरो० ४/२३) वरप्रस्थानं (नपुं०) विवाह के लिए दूल्हे का प्रस्थान। वराकः (पुं०) शिव, संग्राम। वरफलः (पुं०) नारिकेल तरु। युद्ध। वर बाह्निकं (नपुं०) केसर, जाफरान। वराकी (स्त्री०) दीन। बेचारी, ०अभागिन्। वरमाल्य (स्त्री०) वरमाला, वरण करने की माली, स्वीकारोक्ति | चकवी। (वीरो० ४/२५) माला। (जयो० ६/१२६) वराङ्गं (नपुं०) सिर, मस्तक। वराङ्गमूर्धगुह्ययो' इत्यमर (जयो० वरमाला (स्त्री०) वरणमाला। १७/४०) वराङ्गमस्तके योतैः इति वि (जयो० १७/४०) वरयात्रा (स्त्री०) विवाह के लिए दुल्हे का प्रस्थान। वराङ्गिन् (वि०) सुंदर देह वाली रूपवती। (वीरो० ४/६३) वरयात्रिकर (वि०) बराती, दूल्हे के साथ चलते वाले व्यक्ति। वराटः (पुं०) [वरमल्य मटति-अट्+अण्] ०कपर्दिका। (जयो०वृ० १२/२८) ०कौड़ी, वरयातकसमूहः (पुं०) बराती। (जयो० १०/५५) रस्सी, डोरी। वरयानं (नपुं०) विवाह योग्य वाहन। (जयो० १०/५५) वराटकः (पुं०) कमल, कोड़ी। वरयानसमूहः (पुं०) वरयात्रा समूह। (जयो० १०/५५) ०डोरी, रस्सी। वररुचिः (पुं०) प्राकृत व्याकरण का रचनाकार। वराटिका (स्त्री०) [वराट् कन्+टाप्] कौड़ी। वरतु (स्त्री०) श्रेष्ठ ऋतु, श्रेष्ठ कान्ति। (जयो० ५/९५) वराणः (पुं०) इन्द्र। वरलः (पुं०) बरी। वराणसी (स्त्री०) बनारस नगरी। वरुणा और अस्सी नदी का हंसिनी। स्थान। वरलब्ध (वि०) वरदान को प्राप्त। वरारकं (नपुं०) हीरक मणि। वरलब्धः (पुं०) चम्पक वृक्ष। वरार्थ (वि०) वरण योग्य। (जयो० ५/९५) वरवत्सला (स्त्री०) चम्पक वृक्ष। वराह (वि०) वर के योग्य। (जयो० ४/४०) वरवत्सला (स्त्री०) सासू। वरालः (पुं०) लौंग, लवण। वरवर्णं (नपुं०) स्वर्ण, सोना।। वराशिः (स्त्री०) [वरं आवरणमश्नुते वर+अश्+इन्] [वरैः वरवर्णशासिका (वि०) श्रेष्ठ रूपधारिणी, वरवर्णिनी, श्रेष्ठैः अस्यते क्षिप्यते-वर+अस्+इन्] मोटा कपड़ा, स्थूल उत्तमकामिनी (जयो० २/५७) वस्त्र। वरवर्णिनी (स्त्री०) रूपिणी स्त्री, सुन्दर स्त्री, कामिनी। वरासिराट् (पुं०) श्रेष्ठखड्ग। (जयो० ७/१०६) लक्ष्मी। वराह। (पुं०) [वराय अभीष्टाय मुस्तादिलाभाय आहन्ति-भूमिन् दुर्गा, सरस्वती। आ+हडि] सूकर। वरवेशधारक (वि०) सुंदर रूप का धारण करने वाला। मैंदा, बैल, बादल। (जयो० ९/९) वराहकंदः (पुं०) वराहीकन्द, एक खाद्य पदार्थ। वरसन्नयः (पुं०) वनयात्रिक, बराती। (जयो० १०/५५) वराहकर्णः (पुं०) एक बाण विशेष। वरभ्रजः (पुं०) वरमाला, दूल्हे के वरण की माली, पतिचयन वराहकर्णिका (स्त्री०) एक अस्त्र विशेष। की माला। वराहकल्पः (पुं०) वराहावतार का समय। वरा (स्त्री०) [वृ+अच्+टाप्] त्रिफला-हरड़, बहेड़ा और | वराहमिहिरः (पुं०) ज्योतिर्वेत्ता। For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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