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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्यभिचारभृत १०३४ व्यवच्छेदः मारण कर्म। (जयो०वृ० १/४०) व्ययित (भू०क०कृ०) [व्यय्+ क्तु] व्यय किया गया, खर्च विच्छेद्यता, अनास्था, अविश्वास। किया गया, क्षय ग्रस्त। अभक्ति, अशुद्धि, पाप। ०हानियुक्त, विनाश युक्त। असंगति, अनियमितता, अपवाद। व्ययिनी (वि०) हानिकी। (जयो० १५/३७) हेत्वाभास, साध्य के न होने पर भी हेत की विद्यमानता। व्ययीकरणं (नपुं०) विनाश रूप। (जयो०वृ० ९/१) विलक्षणत्वादिव्यत्र. व्यभिचारः पुरादिना। (हित०१८) व्यर्थ (वि०) [विगतोऽर्थो यस्मात्] निरर्थक. विफल, अर्थ व्यभिचारभृत (वि०) अनियमित्ता होना। पदत्वाद् ब्राह्मण पदमद्वैते हीन, निष्प्रयोजन ( जयो० २/७१) प्रयोजन रहित। व्यर्थमेव व्यभिचारभृत्। गुरुताप्रकाशिनः के श्रयन्तु किल शर्मनाशिनः (जयो० व्यभिचारलीन (वि०) व्यभिचार में तत्पर। (जयो० १/४०) २/७१) __ (हित० सं० १८) व्यर्थता (वि०) निष्प्रयोजनता, निरर्थकता। (हित० १५) व्यभिचारिणी (स्त्री०) व्यभिचारिणी स्त्री, सतित्व विहीन गोत्ववत् सदृशाकारं, विप्रत्वमिति चोदितम्। स्त्री, पररमणरती स्त्री। __ तथा प्रतीत्यभावेन, व्यर्थतामेव गच्छति।। (हित० १५) व्यभिचारिन् (वि०) [व्यभिचार+इनि] ०अनियमित, असंगत। व्यर्थीकृत (वि०) बेकार किया हुआ, निरर्थक हुआ. निष्प्रयोजन असत्य, मिथ्या। को प्राप्त हुआ। (वीरो० १४/३३) दुःशीलाचरण। (जयो०वृ० १/४०) व्यलीक (वि०) [विशेषेण अलति-वि+अल+कीकन] मिथ्या, ०पथभ्रष्ट, भ्रान्त। झूठ, असत्य। श्रद्धाहीन, परस्त्रीगामी पुरुष। ०कुत्सित, असुखद, अनभिमत। व्यभिचारिभावः (पुं०) असंगत भाव, मिथ्याभाव, रस के व्यलीकं (नपुं०) अप्रिय, दुःखद। विभाव, अनुभाव और व्यभिचारि भाव। ०पीड़ा शोक, दुःख, संताप। नियमित रूप से किसी रस के साथ न रहने से ०व्याकुलता। व्यभिचारिभाव है। संचारी भाव का नाम व्यभिचारि भाव है। झूठ, असत्य। व्यय (सक०) जाना, पहुंचना। ०व्यय करना, प्रदान करना, | व्यलीकिन् (वि०) असत्य बोलने वाला, झूठ बोलने वाला। अर्पण करना। व्यलीकिनोऽप्रत्ययसम्विधाऽतः प्रोत्पादयेस्तं न कदापि मातः। ०फेंकना, डालना, छोड़ना। व्यलोक (वि०) देखा गया। (दयो० ५६) (समु० १/९) ०हांकना। व्यलोपिन् (वि०) हरण करने वाला, लोपमि। (जयो० १/६२) व्यय (वि.) [वि+इ+अच] विनाश, लोप, हानि। (भक्ति०४) 'लुप्तप्राया जातेत्यर्थः' (जयो० ३/३२) परिवर्तनशील, परिणमन युक्त। व्यवकलनं (नपुं०) [वि+अव+कल+ल्युट] वियोग, विछोह. ०क्षय, ह्रास, अध:पतन। घटाना, एक राशि से दूसरी राशि को कम करना। सर्च, परिव्यय, विनियोग। (जयो० २/११३) व्यवक्रोशनं (नपुं०) [वि+अव+क्रुश ल्युट] ०तू तू मैं मैं अपव्यय। 'पूर्व भावविगमो व्ययनं व्ययः' करना, गाली-गलौच करना। पूर्व पर्याय का विनाश। व्यर्थ में विवाद करना। व्ययनं (नपुं०) [व्यय् ल्युट्] खर्च करना, विनाश करना, व्यवच्छिन्न (भू०क०कृ०) [वि+अव+छिद+क्त] ०वियुक्त, हानि करना। विभक्त, विभाजित। व्ययस्थान (नपुं०) नाशस्वरूप, राहुग्रहनाश रूप। (जयो० अंकित, चिह्नित। १५/६९) ०अवरुद्ध, बाधित। व्ययार्थ (वि०) [व्यगतोऽर्थो यस्य तद् व्ययार्थम्] अन्यथा ०काट डाला गया, फाड़ा गया। बात, निष्प्रयोजन। (जयो० १२/१४६) व्यवच्छेदः (पुं०) [वि+अव+छिद्+घञ्] विभाजन, वियोजन, विनाशनार्थ, खर्च हेतु। विनाश, घात। For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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