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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्यवधा १०३५ व्यवहारः विभेदक. भिन्न भिन्न करना। वैषम्य, विपरीतता। ग्रन्थ का परिच्छेद, अनुभाग। व्यवधा (स्त्री०) [वि+अव+धा+अङ्+टाप्] ०परदा, व्यवधान, रोक, आवरण। व्यवधानं (नपुं०) रोक, आवरण, परदा। (जयो० १७/२५) अवरोध, हस्तःक्षेप, वियोग। छिपाना, अन्तर्धान, व्यशन। अवकाश, अन्तराल। व्यवधायक (वि०) [वि+अव+धा+ण्वुल्] ०आवरण, रोक, ढकना। अवरोध, अन्तर्धान। व्यवधिः (स्त्री०) [वि+अव+धा+कि] ०आवरण, हस्तक्षेप, गतिरोध। व्यवसाय: (पुं०) [वि+अव+सो+घञ्] प्रयत्न, व्यापार, चेष्टा। उद्योग, वाणिज्य, व्यवहार। अवाय, अनुष्ठेय के अनुष्ठान में उत्साह रखना। ०कृत्य, कर्म, क्रिया। (जयो०वृ० ३/१७) नौकरी, धन्धा, प्रवृत्ति। व्यवसायगत (वि०) प्रयत्नशील। व्यवसायघोषः (पुं०) वाणिज्य संघ। व्यवसायचेष्टा (स्त्री०) उद्योग की चेष्टा। (समु० १/३१) व्यवसायजन्य (वि०) व्यवहार युक्त। व्यवसायहीन (वि०) प्रयत्न रहित, उद्योग से विमुख। (समु० १/३३) व्यवसायिन् (वि०) [व्यवसाय+इनि] उद्योगी, परिश्रमी, ऊर्जाशील। ०चेष्टायुक्त, प्रयत्नशील। ०दृढ़ संकल्पी, धैर्यगत। व्यवसित (भू०क०कृ०) [वि+अव+सो+क्त] संकल्पित, धैर्ययुक्त, प्रयत्नशील, उद्यमवान्। निश्चित, निर्धारित, आयोजित। प्रयास किया गया। व्यवस्था (स्त्री०) [वि+अव-स्था+अ+टाप] स्थिरता, निश्चितता। दृढ़ता, धैर्यता। विभाग, विभाजन। (वीरो० १८/१३) ०क्रम स्थापन। नियम पद्धति। (सम्य० १२५) ०सहमति, स्वीकृति। ०अवस्था, दशा। वीक्ष्येदृशीमङ्गतामवस्थां तेषां महात्मा कृतवान् व्यवस्थाम्। (वीरो० १८/१३) विभज्य तान् क्षत्रिय-वैश्य-शूद्रभेदेन मेधा-सरितां समुद्रः।। (वीरो० १८/१३) व्यवस्थापनं (नपुं०) [वि+अव+स्था ल्युट्] ०क्रमबन्धन, समाधान, निर्धारण। नियम, विधान, निश्चय। स्थिरता। दृढ़ता, धैर्य। वियोग। व्यवस्थापक (वि०) [वि+अवस्था णिच्+ण्वुल]०व्यवस्था करने वाला, प्रबन्धक। संयमक। व्यवस्थापनं (नपुं०) [वि+अव+स्था+णिच् ल्युट] निर्धारण, निश्चयकरण। (जयो०० २/२) स्थिर करना, दृढ़ करना, नियमित करना। व्यवस्थापित (भू०क०कृ०) [वि+अव स्था+णिच्+क्त] ०क्रमबद्ध, निश्चित। अवस्थित, दृढ़ता युक्त। व्यवस्थित (भू०क०कृ०) [वि+अव स्था+क्त] निश्चित, अवस्थित, स्थिर। निर्धारित, नियमित। अवलम्बित, आधारित। वियुक्त, क्रम युक्त किया गया। व्यवस्थिति (स्त्री०) स्थिरता। (जयो० २/२) व्यवहूर्त (पुं०) [वि+अव+ह-तृच] ०प्रबन्धकर्ता, व्यवस्थापक। न्यायधीश। नियमन कर्ता, निर्धारण करने वाला व्यक्ति। व्यवह (अक०) घूमना, चलना, परिभ्रमण करना। (समु०२/२०) ___ व्यवहारन-संचरन् (जयो०१० २/१८) व्यवहारः (पुं०) [वि+अव+ह+घञ्] ०वृत्ति, प्रवृत्ति। व्यवसाय। (जयो०वृ० १३/९) . आचरण, क्रिया, कर्म। (सम्य० १२६) 'विधिपूर्वकमवहरणं व्यवहारः' (जैन०ल० १०३९) रीति, पद्धति, नियम। ०प्रचलन, प्रथा, प्रशासन। For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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