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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्यध १०३३ व्यभिचार: व्यध् (सक०) बींधना, कष्ट पहुंचाना। प्रहार करना, मारना, छल (जयो० ५/४५) सूचना, निरूपण। घात करना। नाम, अभिधान। छिद्र करना, खोदना। उपाय, प्रयत्न गर्त बनाना। व्यपदेष्ट्र (पुं०) [वि+अप+दिश+तृच्] छलिया, ठग। व्यधः (पुं०) [व्यध्+अच्] बींधना, प्रहार करना, नष्ट करना, व्यपरोपणं (नपुं०) [वि+अप्रुह् णिच्+ ल्युट्] ०उन्मूलन, घात करना। उखाड़ना, घायल करना। ०हटाना, भगाना छिद्र करना। फाड़ना, काटना। व्यधिकरणं (नपुं०) [वि+अधि+क+ल्युट्] भिन्न आधार, व्यपहारः (पुं०) आहार सम्बंधी दोष। पृथक् आश्रय। व्यपाक् (सक०) निकाल देना, बचाना। (मुनि० ६) व्यध्यः (पुं०) [व्यध्+ ण्यत्] निशाना, लक्ष्य। व्यपाकृतिः (स्त्री०) [वि+अप+अ+कृ क्तिन्] निष्कासन, व्यनक्तिः (स्त्री०) प्रकटीकरण। (जयो० ११/१३) दूरीकरण, निकाल देना। व्यनपायि (वि०) विच्छेदरहित, अखण्ड। (जयो० १३/२७) व्यपायः (पुं०) [वि+अप+इ+घञ्] ०अन्त, समाप्ति, अभाव व्युनुनादः (पुं०) प्रतिध्वनि, ऊँची गूंज। नाश, विनाश, क्षति। व्यन्तरः (पुं०) (विशिष्टः अन्तरो यस्य] पिशाच, यक्ष। ०लोप। अनेक प्रकार के निवास युक्त देव। (भक्ति० ३५) व्यपायि (वि०) अपाययुक्त। (जयो०वृ० २/१३५) 'विविधदेशान्तराणि येषां निवासास्ते व्यन्तरा। "व्यन्तर जाति भयभीत। (जयो०वृ० २/१३५) के देव। 'व्यन्तरा किन्नर किं पुरुष-महोरग-गन्धर्व' व्यपाश्रयः (पं०) [वि+अप+आ+श्रि+अप] ०शरण लेना, यक्ष-राक्षस-भूत-पिशाचा (त०सू० ४/११) सहारा लेना, आश्रय लेना। चार निकायों के देवों में द्वितीय व्यन्तरदेव। (त०सू०प०५६) विश्वास करना। व्यन्तरी (स्त्री०) यक्षिणी। (सुद० १३३) देवी (सुद० ११६) व्यपेक्षा (स्त्री०) [वि+अप्+ईक्ष् अङ्कटाप्] ०आशा, इच्छा, व्यप् (सक०) फेंकना। वाञ्छा। ०घटाना। ०विचार, व्यवहार, सम्बन्ध। ०दूर हटाना। व्यपेत (भू०क०कृ०) [वि+अप्+इ+क्त] वियुक्त, रहित। ०अलग करना। (भक्ति० १६) व्यपकृष्ट (भू०क०कृ०) [वि+अप्+कृष+क्त] ०हटाया हुआ, विसर्जित, परित्यक्त। दूर किया हुआ। व्यपोढ (भू०क०कृ०) [वि+अप+वह क्त] विपरीत, विरोधी। व्यपगत (भू०क०कृ०) [वि+अप+गम+क्त्] विसर्जित, प्रदर्शित, बतलाया। * हटाया गया, दूर किया गया। प्रकटीकृत। अन्तर्हित। व्यपोहः (पुं०) [वि+अप्+ऊह+घञ्] दूर करना, अलग व्यपगमः (पुं०) [वि+अप्+गम+अप्] विसर्जन, अन्तर्धान। करना, निकालना। व्यपत्रय (वि०) [विगता अपत्रया यस्य] निर्लज्ज, ढीठ, लज्जा व्यभिधरित (वि०) विलक्षण होता हुआ, समझा जाता, रहित। ०दिखाई पड़ता है। (हित० १८) व्यपदिष्ट (भू०क०कृ०) [वि+अप्+दिश्+क्त] नामांकित किया | व्यभिचारः (पुं०) [वि+अभि+ चर्+घञ्] कुकर्म, कुशील, कुसेवन। प्रस्तुत किया गया। ०कुमार्गनुसरण, दुराचरणा व्यपदेशः (पुं०) [वि+अप-दिश्+घञ्] व्याजता (वीरो० ६/३६) दुःशीलाचरण। (जयो० १/४०) ०संदेश। अतिक्रमण, उल्लंघन। गया। For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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