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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्यतिरेकदृष्टान्तः १०३२ व्यथित एक अलंकार (जयो०० १/३) जिसमें किसी विशेष दशाओं में उपमान की अपेक्षा उपमेय को श्रेष्ठतम बताया जाता है। (जयो०व०१/३) 'उपमानाद्यदन्यस्य व्यतिरेकः स एव सः' (काव्य० १०) केनचिद्यत्र धर्मेण द्वयोः संसिद्धसाम्ययोः भवत्येकतराधिक्यं व्यतिरेकः स उच्यते।। (वाग्भटालंकार ४/८३) 'गुप्तिभागिह च कामवत्तुः न, पक्षपाति च शीतरश्मिवत्पुनः। (जयो० ३/१५) भिन्न संतान, जो विसदृशता रूप अवस्था है। कारण के अभाव में जो कार्य का भी अभाव है। (वीरो० १९/२०) अन्वय के साथ कार्य-कारण का भाव। (हित० सं०१६) व्यतिरेकदृष्टान्तः (पुं०) साध्य के अभाव में साधन का अभाव जहां कहा जाता है। 'साध्याभावे साधनाभावो यत्र कथ्यते स व्यतिरेकदृष्टान्तः' (परीक्षा ३/४४) व्यतिरेकिन् (वि०) [व्यतिरेक इनि] ०आगे बढ़ जाने वाला, आगे निकल जाने वाला। अपवर्जन करने वाला। अभाव दर्शाने वाला। व्यतिरेकोपमा (स्त्री०) व्यतिरेक अलंकार और उपमा। (जयो० ३/१५) व्यतिषक्त (भू०क०कृ०) [वि+अति+शञ्ज+क्त] पारस्परिक सम्बन्धयुक्त, आपस में मिला हुआ, संसक्त, मिश्रित। व्यतिषंगः (पुं०) [वि+अति+शञ्ज+घञ्] ०संयोग, मिलाप। पारस्परिक सम्बंध। अन्योन्य सम्बन्ध, एकनेकता। व्यतिहारः (पुं०) [वि+अति+ह+घञ्] विनिमय। लेन-देन। अदला-बदली। व्यतीत (भू०क०क०) [वि+अति+इ+क्त] ०बीता हुआ हुआ। समाप्त। (समु०४/१९) यापित। (जयो०वृ० १८८२) विसर्जित, परित्यक्त, छोड़ा गया। व्यतीति (वि०) व्यपगम। (जयो० १८/) व्यतीत्य (वि०) हितकर। (जयो० १/६) (सुद० ११६) व्यतीपातः (पुं०) [वि+अति+पत्+घञ्] ०अनादर, अपमान, तिरस्कार। पूर्ण प्रयाण, अति गतिशीलता। सम्पूर्ण विचलन। व्यत्य (वि०) समाप्त। (सुद० १/४६) व्यत्ययः (पुं०) [वि+अति+इ+अच्] ०पार करना। उस पार होना। ०अभिप्राय। (जयो० २२/५८) ०व्युत्क्रान्ति। अन्तः परिवर्तन, (जयो० ६/६९) रूपान्तरण। अवरोध, अड़चन। विरोधा ०विपर्यस्त, वैपरीत्य। व्यत्यस्त (भू०क०कृ०) [वि+अति+अस्+क्त] व्युत्क्रान्त, विपर्यस्त। विपरीत, विरोधी। असंगत। विकीर्णगत। व्यत्यासः (पुं०) [वि+अति+अस्+घञ्] ०विरोध, असंगत विपरीतता। ०व्युत्क्रान्त। व्यथ् (अक०) व्यथित होना, व्याकुल होना। ०दु:खी होना, कष्ट होना। शोकाक्रान्त होना, अशान्त होना। खिन्न होना, म्लान होना। ०कांपना, भयभीत होना। व्यथक (वि०) [व्यथ् णिच्+ण्वुल] ०दु:खद, कष्टकर, व्याकुलित। व्यथनं (नपुं०) [व्यथ्+ ल्युट्] सताना, पीड़ा देना। व्यथा (स्त्री०) [व्यथ्+अङ्-टाप] पीड़ा, कष्ट, वेदना। (जयो० २/४८) ०भय, चिंता, व्याकुलता। विक्षोभ, अशांति। रोग। व्यथाकथा (स्त्री०) व्यर्थ कथा। व्यथाकथामेष कुतः प्रयातु। (वीरो० १२/३४) व्यथाकर (वि०) व्यथां करोतीति व्यथाकरः, बाधाकारक। (जयो० २/२६) व्यथित (भू०क०कृ०) [व्यथ्+क्त] ०पीड़ित, दुःखी, कष्ट युक्त। (जयो० १४८) आतङ्कित। विक्षुब्धा ०अशान्त। For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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