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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्यच्छादि १०३१ व्यतिरेकः व्यच्छादि (वि०) आच्छादित। (जयो० १५/७३) •साफ किया गया, संकेतित। व्यजः (पुं०) [वि+अज्+घञ्] विजन, बीजना, पंखा। चिह्नित, चित्रित, अभिव्यक्त। व्यजनं (नपुं०) [वि+अ+ल्युट्] ०पंखा, हवा करने का | व्यडम्बकः (पुं०) अरण्ड़ पेड़। उपकरण। व्यतिकरः (पुं०) [वि+अति+कृ+अप] संज्ञापरिवर्तन, व्यञ्जक (वि०) [वि+अ+ण्वुल] संकेतित, प्रकटित, अदला-बदली। (जयो० ११/५७) स्पष्ट भाव को प्राप्त। उपलक्षित। मिश्रण, इकट्ठा मिला देना। व्यञ्जकः (पुं०) नाटकीय भाव, हाव-भाव, हास-परिहास। सम्मिलन, मिलाप, सम्पर्क। संकेत। ०रगड़ना। प्रतीक। घटना। व्यञ्जनं (नपुं०) [वि+अञ्ज ल्युट्] व्यञ्जन अक्षर-कवर्ग से ०सम्भूति। लेकर पवर्ग तक। स्वर रहित अक्षरों या अवयवों का वर्ग ०वृत्तान्त। (जयो० ३/४९) ०अवसर। संकट। संकेत, प्रकट करना। चिह्न, निशान, स्मृति चिह्न। व्यतिकीर्ण (भू०क०कृ०) [वि+अति कृ+क्त] मिश्रित, मिला छद्मवेश, परिधान। हुआ, संयुक्त। व्यतिक्रमः (पुं) [वि+अति+क्रम+घब] ०अतिक्रमण, विचलन, लिंगबोधक चिह्न। उल्लंघन मिष्ठान्न। (जयो०१० ३/६०) ०भंग विनाश। खाद्य पदार्थ, विविध प्रकार के पकवान। (दयो० ९५, अवहेलना, उपेक्षा, भूल। जयो०वृ० १२/१११) शाकादि पकवान। वैपरीत्य, उलट। ०व्यञ्जनं वास्तुकोद्भूतलक्षणं तत्र सम्मतम्। (जयो०२८/३४) विपर्यस्ता ०तालवृन्त, पंखा। (जयो०वृ० १२/२२) ०बीता हुआ, गुजरा हुआ। व्यञ्जनचित्रं (नपुं०) एक अलंकार, जिसमें समस्त श्लोक की ग्रहण करने में दोष लगना, अतिचार आना। 'विशेषेण रचना में एक व्यञ्जन को चित्रित किया जाता है। पद भेदकारणतोऽतिक्रमो व्यतिक्रमः' (जैन०ल० १०३७) व्यञ्जनदलं (नपुं०) खाद्य समूह। (सुद०७२) व्यतिक्रमणं (नपुं०) विषयोपकरण में प्रवृत्ति, उपेक्षा भाव की शब्द प्रकाशन। वृत्ति। व्यञ्जनवयः (पुं०) शब्द के भेद से वस्तु का ग्रहण, वस्तु भेद व्यतिक्रान्त (भू०क०कृ०) [वि अतिक्रम+क्त] ०वियुक्त, का अध्यवसाय। भिन्न, पृथक्। व्यञ्जननिमित्तं (नपुं०) तिल, मशादि से सुख का कारण, चिह्न अतिक्रमण, उल्लंघन। ___का हेतु। ०प्रतीति का कारण। उपेक्षित, बीता हुआ। व्यञ्जनपर्यायः (पुं०) चक्षु से ग्रहण करने योग्य पर्याय, सामान्य व्यतिरिक्त (भू०क०कृ०) [वि+अति+रीच्+क्त] ०वियुक्त ज्ञान का विषय। भिन्न। (हित० १८) व्यञ्जनशद्धि (स्त्री०) व्यञ्जनाक्षर में शुद्धि। प्रत्याहृत, रोका हुआ। व्यञ्जनसंक्रान्तिः (स्त्री०) श्रुतवचन का आलम्बन। व्यतिरेकः (पुं०) [वि+अति+रिच+घञ्] ०भेद, अन्तर। व्यञ्जनाचार: (पुं०) प्राप्त अर्थ का ग्रहण। 'व्यञ्जनमव्यक्तं वियोग। शब्दादिजातम्' तस्यावग्रहो (जैन०ल० १०२६) 'पत्तत्थगहणं निष्कासन, अपवर्जन। वंजणावग्गहो' (धव० १/३५५) वैषम्या व्यञ्जित (भू०क०कृ०) [वि+अञ्ज+क्त] ०ध्वनित, व्यक्त, ०असमानता। प्रकट हुआ। ०अनन्वया For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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