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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वेसरः १०२५ वैजयन्तः वेसरः (पुं०) खच्चर, गधा। वेसवारः (पुं०) [वेस्+व+अण] गर्म मसाला। वेहाणसमरणं (नपुं०) फंदा लगाकर मरना। वेहार: (पुं०) विवाद क्षेत्र। वेहल् (सक०) जाना, पहुंचना। वै (अक०) सूखना, शुष्क होना। म्लान, निढाल, अवसन्न। वै (अव्य०) निश्चयात्मक अव्यय, स्वीकृतिजन्य अव्यय। (सुद० ३/२०) नि:संदेह, सचमुच, यथार्थ में ही, एव। धर्मेण वै संध्रियतेऽत्रवस्तु, न वस्तुसत्त्वं तमृते समस्तु। (सम्य० ७१) कभी कभी यह 'वै' सम्बोधन अर्थ में भी प्रयुक्त होता बैंशतिक (वि०) बीस में खरीदा हुआ। वैकक्षं (नपुं०) [विशेषेण कक्षति व्याप्नोति] उत्तरीय, अंगोछा, ___ओढ़नी, योग। वैकटिकः (पुं०) जौहरी, पारिख। वैकर्तनः (पुं०) कर्ण का नाम। वैकल्प (वि०) [विकल्प+अण] विकल्पता, ऐच्छिकता। संदिग्धता, अनिश्चय, असमंजस। संशय, संदेह। वैकल्पिक (वि०) [विकल्प+ठक] ०ऐच्छिक, विकल्प युक्त। अनिर्णीत, संदिग्ध, संशय। वैकल्यं (नपुं०) [विकल+ष्यञ्] विकलता, नि:सारता। (जयो० २८/२६) त्रुटि, कमी, अभाव। अस्तित्वाभाव। ०अक्षमता, विक्षोभ। (सम्य० १/६) वैकारिक (वि०) [विकार+ठक] विकृत, विकार विषयक। वैकालः (पुं०) [विकाल+अण] तीसरा प्रहर, मध्याह्नोत्तरकाल, सायंकाला वैकालिक (वि०) सायंकाल सम्बन्धी। वैकुण्ठः (पुं०) विष्णु। ०इन्द्र। वैकुण्डं (नपुं०) स्वर्ग। ०अभ्रका वैकुण्ठलोकः (पुं०) स्वर्ग स्थान। वैकृत (वि०) परिवर्तित, बिगड़ा हुआ, बदला हुआ। वैकृतं (नपुं०) परिवर्तन, अरुचि! ०अपशकुन, अनिष्ट सूचक घटना। वैकृतिक (वि०) [विकृति+ठक्] परिवर्तित, संशोधित। विकृति सम्बंधी। वैकृत्यं (नपुं०) [विकृत+ष्यज] परिवर्तन। वैक्रान्तं (नपुं०) रत्न विशेष। वैक्रिया (स्त्री०) एक ऋद्धि विशेष, जिसमें शरीर को सूक्ष्म से सूक्ष्म या बड़े से बड़ा किया जा सकता है। 'अष्टगुणैश्वर्ययोगादेकानेकाण-महच्छरीरविविध-करणं विक्रिया' (स०सि० २/३६) वैक्रियिकं (नपुं०) विक्रिया का प्रयोजन। 'विक्रिया प्रयोजन वैक्रियिकम्' (त०वा० २/२६) विविधर्धिगुणयुक्तविकार लक्षणं वैक्रियिकम्' (त०वा० २/४९) वैक्रियिककाययोगः (पुं०) ऋद्धि के आश्रय से आत्मप्रदेशों में परिस्पन्दन होना। वैक्रियिकशरीरः (पुं०) विक्रिया ऋद्धि युक्त शरीर। वैक्लेव्ययत (वि०) नपंसकता रहित। (सद० ८४) वैखरी (स्त्री०) [विशेषेणं खं राति-रा+क+अण+ङीप्] स्पष्ट उच्चारण, ध्वनि उत्पादन। ०वाशक्ति। ०वाणी, भाषण। वैखानस (वि.) [वैखानसस्य इदम+अण] संयासी योगी से सम्बंधित। वैखानखः (०) वैरागी, वानप्रस्थ। वैगुण्य (वि०) [विगुण+ष्यञ्] सद्गुण का अभाव, गुण विहीनता। त्रुटि, दोष, कमी। वैचक्षणं (नपुं०) [विचक्षण+ष्यञ्] ०प्रवीणता, कुशलता. निपुणता। वैचित्य (वि०) मानसिक विकलता, मन के भावों का अभाव, शोक। वैचित्र्यं (नपुं०) [विचित्र+ष्यज] विविधता, विभिन्नता। नाना प्रकार। आश्चर्यजनक। (हित० १५) वैचित्र्यसंदेशक (वि०) नाना प्रकार का संदेश देने वाला। वैजननं (नपुं०) [विजनन+अच] गर्भ का अन्तिम महिना। (जयो० २३/७५) वैजयन्तः (पुं०) ध्वज, पताका, घर, भवन, महल। ०इन्द्र भवन, वैजयन्तदेव। (त०सू०पृ० ६६) For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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